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________________ दान और मृत्युपत्र [सोलहवां प्रकरण मृत्युके एक वर्ष बाद गणेश को सनिगवां ग्राम और उसका मुनाफा एकमुश्त पानेका हक़ हो जायगा; ६ वर्ष आगे की शर्त नाजायज़ होगी। (४) एक आदमी ने वसीयत की कि सनिगवां ग्रामका मुनाफा १० वर्ष तक जमा करके शङ्कर के पुत्रको दिया जाय । वसीयत करने वालेके मरने के समय शक्करके पुत्र म था; इसलिये वसीयत नाजायज़ है। (५) शङ्करने एक वसीयत इस शर्तपर की कि अठारह वर्ष की उमर होनेपर महेश को यह जायदाद मिले और उसका मुनाफा १८ वर्ष तक जमा रहे, वसीयतमें यह बात नहीं कही गयी थी कि महेशकी नाबालिशी सम्बन्धी जैसे पढ़ाई, भरण-पोषण आदि के खर्च देकर जो रुपया बचे वह जमा रहे । एसी सूरतमें शङ्कर के, मरते ही महेश मालिक हो जायगा और उसकी नाबालिशीमें जो पढ़ाई आदि का खर्च पड़ेगा उसे मुजरा करके जो मुनाफा बचेगा उसे अठारह वर्ष समाप्त होनेपर दे दिया जायगा । यहां १८ वर्ष की मुहत क्यों मानी गयी ? इसका जवाब यह है कि यह मुद्दत नाबालिग्री की है। इस लिये जायज़ होगी। अगर वसीयतनामेमें यह लिखा होता कि 'महेशको १८ वर्षके याद दिया जाय' तो नाजायज़ था; और अगर यह लिखा हो कि 'नायालिगी समाप्त होनेपर दिया जाय तो जायज़ होगा। मतलब यह है कि नाबालिशी मियादसे एक दिन भी यदि ज्यादा लिखा हो तो वह नाजायज़ होगा। इन्डियन् सक्सेशन् एक्ट नं० ३६ सन् १६२५ की दफा ११४का सारांश यह है-'जब कोई जायदाद वसीयत द्वारा किसी एक या अधिक आदमियों को छोड़ी जाय और उसमें यह शर्त रहे कि उस आदमी या उन आदमियोंके मरनेके बाद वह जायदाद किसी दूसरे आदमीको अमुक मुद्दतमें दी जाय, और वह मुद्दत अगर उस दूसरे आदमीकी नाबालिग्रीकी मुद्दतसे ज्यादा हो, तो उसके सम्बन्धकी वसीयत नाजायज़ होगी।' उदाहरण-(१) 'क' को कोई जायदाद वसीयत द्वारा दी गई और यह शर्त रखी गई कि 'क' के मरने के बाद वह जायदाद 'ख' को मिले और 'ख' के मरने के बाद वह 'ख' के ऐसे पुत्रको मिले जो सबसे पहले २५ बर्षकी उमरका हो, वसीयत करने वालेके मरनेके बाद 'क' और 'ख' दोनों जिन्दा थे अब ऐसा मानो कि 'ख' का वह लड़का जो सबसे पहिले २५ वर्षका होगा, वसीयत करने वालेके मरने के बाद पैदा हुआ और 'क' और 'ख' दोनोंमेंसे जो सबसे पीछे मरे उसकी मौतकी तारीखसे अट्ठारह वर्षकी मुद्दतके पश्चात् वह लड़का २५ वर्षका हुआ तो उसके सम्बन्धकी वसीयत नाजायज़ होगी लेकिन अगर वह लड़का अठारह वर्षकी मुद्दतके अन्दर २५ वर्षका होजाय तो वसीयत जायज़ होगी। (२) एक जायदाद वसीयत द्वारा 'क' को दी गई, और 'क' के बाद 'ख' को मिलने की शर्त थी और हिदायत यह थी कि 'ख' के मरने के बाद वह
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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