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________________ [ सोहवां प्रकरण निश्चित न हो सकती हो तथा भाषा सन्देह जनक हो तो ऐसे मामलेमें यही उचित समझा गया है कि ऐसे वसीयतका वह अर्थ माना जायगा जो उस भाषाका जानने वाला एक अजनबी समझदार आदमी वसीयतको पूरा पढ़कर जो अर्थ समझ सके । ६८० 2 दान और मृत्युपत्र जब वसीयतमें साफ साफ शर्तोंके साथ जायदाद न दी गयी हो तो क़ानून से ज्यादा हक़ नहीं मिलेगा-एक हिन्दूने अपनी दो लड़कियों के छक्रमें वसीयत की । यह लिखा कि मेरे मरने के बाद दोनों लड़कियां जायदाद पावें और उनके बाद उनके लड़के जायदाद पावें और दोनों यानी लड़कियां और उनके लड़के बालिग होनेपर जायदाद पावें । वसीयत करने के समय उनकी शादी न हुयी थी तय हुआ कि लड़कियोंको क़ानूनी हक़से ज्यादा जायदाद में कोई हक़ न मिलेगा । हिन्दूलॉ में जो इन लड़कियों को मिलता है उससे वादा न मिलेगा। देखो - 1929 A 1. R. 214 Pri. बारसुबूत - वसीयतके सम्बन्धमें क़ानून इस विषयमें बिल्कुल साफ है कि बार सुबूत वसीयतका उस पक्षकारके ज़िम्मे होगा जो उसे बयान करता हो उसे अदालत को इस बातका पूरा इतमीनान करा देना चाहिये कि वह वसीयत, वसीयत करने वाले का श्राखिरी और वही वसीयत है तथा उसे वसीयत करने का अधिकार था और अगर अदालतको वसीयत के सम्बन्धमें कोई सन्देह पैदाहो तो उसे हटाना भी चाहिये एवं यह साबित करना चाहिये कि वसीयत करने वाला; वसीयत में लिखी कुल बातोंसे पूरी तौरपर जानकारी रखता था और वह उस समय उसके ज्ञानमें थीं। अगर यह सब बातें, वसीयत वयान करने वालेकी तरफसे साबित करदी गयी हों तो फिर इस बातका बार सुबूत दूसरे पक्षकार पर आ जाता है कि वह साबित करे कि वसीयतमें कोई जालसाज़ी या धोखेबाज़ी या नाजायज़ दबाव की बात की गयी थी, या थी, लछू बीबी बनाम गोपीनरायन 23 Ail 472; श्यामाचरन बनाम क्षेत्रमनी दासी 27 Cal. 521; 27 1. A. 10; सुखदेई बनाम केदारनाथ 23 All. 4053 25 Cal. 825; 25 I. A. 109. दफा ८०६ उत्तराधिकार से बंचित करना वसीयतके द्वारा अपनी सब जायदाद किसी ग़ैर आदमीको देकर हिन्दू अपने वारिसोंके उत्तराधिकारका हक़ मार सकता है देखो - 10 BL. R. 267; 19 W. R C. R. 48; 2 M. I. A. 54; 10 W. R. C. R. 287; 1 Mad. H. C. 487; 10 Mal. 251; 3 Bom. H. C.A. C. 6; हिन्दू अपने दत्तक पुत्रको भी उत्तराधिकारसे बंचितकर सकता है और उस पुत्रको भी जो वसीयत के पश्चात् दत्तक लिया गया हो; देखो - 8. Bom. H. C. O. C. 196; 22 Mad. 490; 6. Bom H CA. C. 224 परन्तु वह अपनी स्त्री
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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