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________________ दाम दुपटका कानून [पन्द्रहवां प्रकरण mme nomwwwwww दफा ७८३ जहांपर मूलधनका कोई भाग अदा कियागया हो जब कोई क़र्जा निस्तबन्दीकी शर्तसे लेने के लिये दिया गया हो और कुछ निस्ते उस शर्तके अनुसार अदा भी होचुकी हों, अथवा किस्तबन्दीसे लेनेके लिये न दिया गया हो एक मुश्त लेने की शर्तसे दिया गया हो और उसका कुछ हिस्सा अदा कर दिया जाय तो दामदुपटका मूलधन वह रकम समझी जायगी जिसपर ब्याज लगाकर नालिश की गयी हो, देखो-डगडूसा बनाम रामचन्द्र (1895 ) 20 Bom. 611; 30 Bom. 452. उदाहरण-महेशने गणेशको ४००) रु० एक रुपया सैकड़े माहवारीके व्याजपर कर्ज दिया और शर्त यह थी कि यह रुपया १००) रुकी किस्तबन्दी से अदा किया जायगा इसके अनुसार गणेशने तीन किस्ते सूद सहित जो उस वक्त तकका था अदा करदी, पीछे महेशने गणेशपर १००) रु० आखिरी किस्त का और १२५) ब्याजका दोनों जोड़कर २२५) रु० की नालिश की । दामदुपट के कायदेके अनुसार महेश १००) रु० से ज्यादा सूद नहीं पा सकता यही सूरत उस कर्जेसे लागू होगी जो क़िस्तवन्दीसे न दिया गया हो-दोनोंमें यही देखा जायगा कि मूलधन वह है जिसपर ब्याज लगाया गया हो। दफा ७८४ पीछे के इकरारसे ब्याजका मूलधन होना प्राचीन कायदा भी यही था देखिये मनु (८-१५४, १५५ ) में कहते हैं कि यदि ऋणी, कर्जा न चुका सके तो धनीको ब्याज देकर फिरसे लिखत लिखदे, यदि ब्याज भी न दे सके तो मूलधन और ब्याज मिलाकर धनी को लिखत करदे ऐसा करनेसे वह ब्याज भी मूलधन समझा जायगा। श्लोक देखो ऋणंदातुमशक्तोयः कर्तुमिच्छेत्पुनःक्रियाम् सदत्वानिर्जितांबृद्धिं करणंपरिवर्तयेत् । ८-१५४ अदर्शयित्वातत्रैव हिरण्यं परिवर्तयेत् यावतीसम्भवेद् बृद्धिस्तावतींदातुमर्हति । ८-१५५ साकलाल बनाम बापू ( 1898 ) 24 Bom. 305 वाले मामले में यही बात मानी गयी है कि किसी पहलेके कर्जे के बारेमें नया दस्तावेज़ लिखा गया हो जिसमें पिछला मूलधन और उसका ब्याज दोनों मिलाकर मूलधन माना गयाहो और उसपर सूद चालू कियागयाहो तोदामदुपटके कायदेके लिये नयी दस्तावेज़में लिखी रकम मूलधन मानी जायगी।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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