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________________ तीओ सन्धी। तो कुमारु संचलिउ तुरंतउ तं संकेयभूमि संपत्तउ । अण्णित्तहि सुहिसयपरियरियउ बंधुयत्तु णयरहो णीसरियउ। अण्णित्तहि सहायसंजुत्तहं चलियइं पंचसयई वणिउत्तहं । अण्णित्तहि कलयलसंघट्टइं करहवसहवाहणई पयट्टई। अपिणत्तहि दिढपीडियचोल्लई उक्खित्तइं भंडई बहुमोल्लई। अण्णित्तहि वणिवरवरपत्तिउ पियमुहसुहदसणु अलहंतिउ । उम्माहउ रणरणउं वहंतिउ पुणु पुणु पियमुहकमलु नियंतउ । विरहवग्गिझुलुक्कियकायउ नियनियपइ अणुअंचिवि आयउ । उम्मुहमुहकमलउ उइंडउ कज्जलजललवमइलियगंडउ । घत्ता । नियपइपिम्मपरध्वसिहिं अहिणवजोवणइत्तियहिं। उप्पायउ कासु न रुहुरुहउ जुवइहिं सासु मुवंतियहिं ॥ २० ॥ धणवइ नियनंदणइ समप्पइ पउरहो पियपेसलई पयंपइ । अहो वणिउत्तहो तहो गुणगारउ जो णयविणयपरक्कमसारउ । दृरविएसवणिजवियड्डहं चाइदाइपडिवाइगुणड्डहं । विनिवि सुव तुम्हहं निक्खेवउ आयहं च्छलु सव्वहं दिक्खेवउ । जो जहिं देसि पहाणु नरिंदहो सो तहिं देखिवि ससुहडविंदहो। तहु मंतिणई करेवि सुपुज्जई दरिसिवि पियपाहुडई अउव्वई। चोरइ चरइं अणुज्जु अवकइ भडभोइयचैहोडचाणका । सव्वइ वंचिजहो अवलोइवि वंचणमइहु अवंचिय होइवि । घत्ता। अइबहु सम्माणदाणु करिवि संपेसिय संपुडिवि कर। चड्डुलंगतुरंगिहि आरुहिवि संचल्लिय सुंदर कुम्वर ॥ २१ ॥ अग्गेयदिसई मल्हंति जति कुरुजंगलु महिमंडलु मुअंति । लंघंति वियणकाणण पलंब पुरगामखेडकव्वडमडंब । जउणानइसलिलु समुत्तरेवि जलदुग्गई थलदुग्गइं सरेवि । अन्नन्नदेसभासइं नियंत रयणायरे वेलाउलई पत्त ।। लक्खिउ समुह जललवगहीरु सप्पुरिसु व थिरु गंभीरु धीरु। आसीविसोव्व विसविसमसीलु वेलामहल्लकल्लोललीलु। दिट्ठई विउलई वेलाउलाई कयविक्कयरयवयणाउलाई। धम्मत्थकामकंखिरसुहाइ सुवियड्डवयणविलयामुहाई। १ B जुवाणकुलउत्तियहिं २ B चहडोचाडकइ ।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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