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________________ तीओ सन्धी। सविणउ भणई काई किर बुच्चइ ओसहु गुलियउ कासु ण रुच्चइ । हउं सकियत्थु अज्जु हउं धण्णउं हउ परमत्वगुणिहिं संपुण्णउं । सिज्झइ किण्ण णरह कयउण्णहं होइ सव्वु परिवाडिए पुण्णहं। पुर पउरालंकारसमण्णिउ पइं चलंत ताउ संचल्लिउ । आसिगहणु महु तउ अमिलंतहो एयहिं तउ ण विसउ चलंतहो। घत्ता । संकेउ करिवि सुहसंगरय णियणियणिलयहो बेवि गय । आउच्छिवि सुहिबंधवसयण बेवि परमसब्भावरय ॥ १४ ॥ बंधुयत्तु गंजोल्लियगत्तउ णिययजणेरिहि कहइ सइत्तउ । माए माए दिढु कज्जु अहिडिउ भविसयत्तु महु समउ परिहिउ । जंपिवि गुणदोसई सुहियंतरु मइंसहुं संचल्लिउ देसंतरु । तेण सहाएं सव्वई कजई महु सिझंति अज्जु णिरवजई । तं णिसुणेवि सरुवई वुच्चइ आयहो सरलसहाउ ण मुच्चइ । एहु महंतु पुत्तु तउ बप्पहो सामिउं पउरधणहो माहप्पहो । सहुं जणणिए गेहहो णीसारिउ अच्छइ कढकढंतु मणि खारिउ । घत्ता । जइ रंजिवि पहु णिम्मलगुणिहिं जणणिवयणु हियवइ धरह। तो पहरिवि कण्णमहाविसिण अम्हहं पडिपरिहउ करइ ॥१५॥ आएंसहुं संकेउ ण किजइ पुव्वविरुडइ हियय ण दिजइ । जाम ण चित्तंतरिण वियंभइ जाम ण पउरुमहायणु थंभइ । जाम ण णेह महातरु भंजइ जाम ण मणु भूवालहो रंजइ। ताम उवाउ कोवि चिंतिजइ कलितरु वरहो मूल छिदिजइ । तेम करिजहि मज्झि समुद्दहो जेम ण मिलई पुणु वि णियविंदहो । तं संकेउ तेण मणि भाविउ थिउ सविलक्खु वयणु मउलाविउ । माइ अणिट्ट तुम्ह जो थामहो लुहामि लीह तहु तणयहो णामहो । माणु मरहु तासु दलवदृमि रयणायरहो मज्झि आवदृमि । करमि तेम परिवडियच्छायहो जेम ण मिलइ पुणु वि णियमायहो । घत्ता । तं वयणु सुणिवि पुत्तहुतणउं हरिसिय बंधुअत्तजणणि । सियकुसुमकयंजलि पिउ चवइ अणुमगि चंपइ धरणि ॥ १६॥ अविसु वि जिणवरपडिम सिंचिवि अहिसिंचिवि अंचिवि परियचिवि। १B परिपरिहउ ।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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