SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 38 सजमभारधुरंधरह सहुच्छलिउ न जाह ।। निअजणणीजुव्वणहरणु जम्मु निरत्थउ ताई ॥ ३ ॥ विरमणु पंचह आसवह इंदियनिग्गह जत्थ । सकसायहं दंडह दमण सतरस संजमु तत्थ ॥४॥ निधिण निट्टर दुश्मण जे पाणि बहु करंति । ते आवजिअपावभर निच्छय नरय पदंति ॥५॥ अजि म जपहु दुग्वयणु पर दूमिद जेण। वा नरवइ नरइहिं गयउ अलिउम्भवदोसेण ॥६ जइ पाणई संसह पदह जह निव्वाहु न अस्थि । तहवि अदिन्तु म संगहसि जं दूसिउ जिणसत्थि ॥ ७ ॥ जा निविनउ दुइपचुरि निवसंतु संसारि । मेहुणसहि समिणंतरिण मण पसरंतु निवारि ॥ ८॥ गादपरिग्रहगहगहिउ नरु हारइ अपवग्गु । मिलिह परिग्रहदुव्वसणु सिवसहकारणि लग्गु ॥९॥ पंचासवविरमणु करहि करहि म निघण पाउ । सिद्धिपुरंधिहि उवरि जह तुज्झ पइइ भाउ ॥१०॥ ककसि फरसि म उव्विअसि निरु कोमलइ म रज्जु । मज्मत्थिउ () वित्थरहिं जिअ जइ मणि निव्वुइकज्जु ॥ ११ ॥ साणिदिउ दुइम दमिउ रसि रसि गिदउ जेण । अवर य इंदिय विसयगय लीलई निजिय तेण ॥ १२ ॥ गंधसुगंधिरं रह करई दुग्गंधिहं संताउ । धाणिदियकयउकरसि जीव म वंधइ पाउ ॥ १३ ॥ जे जिणनाहह मुहकमलअवलोअणकयतोस । पन्न तिलोअहं कोअणई मुहमंडणपर सेस ॥ १४ ॥ पररमणी जे रूवभरि पिक्खिवि जे विहि (ह) संति । रागनिबंधण ते नयण जिण जम्मवि नहु हुन्ति ॥ १५ ॥ जीव म रंजहि मणरयण मुणवि मणोहर गेउ। वसरि मा करि मणि उव्वेड ॥ १६ ॥ गय मय महुअर झस सलह नियनियविसयपसत्त । इक्रिकेण इ इन्दियण दुःख निरंतर पत्त ॥ १७ ॥ इकिणि इंदिय मुक्कलिण कभइ दुक्ख सहस्स । जस पुण पंचइ मुक्ला कह कुसलत्तशु तस्त ॥ १८ ॥ इंदियसक्खि में रई करहु संभावहिं अपवग्गु । जिअ खणभंगुरविसयसहमग्गि अलग्गि म लग्गु ॥१९॥ वयरपरंपर संघडइ बहु उव्वेय करेइ । कोड वियंभिड भंति नहु जीवहं दुग्गइ नेइ ॥ २०॥
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy