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________________ भविसयन्तका । सा भविसाणुरूव तणु मिल्लिवि रयणचूल सुरलोड समिल्लिवि । जाउ नंदिवडूणु धरधारउ पुणु हुउ सासए सिहु भडारउ । वसिवि घरासमि हल्लुत्तालिं विरइड एउ चरिउ धणवालिं । बिहखंडहिं बावीस हिं संधिहिं परिचितियनिय हेउ निबंधिहिं । धत्ता । धक्कडवणिवंसि माएसरहो समुब्भविण । १४८ धणसिरिदेविण विरइउ सरसइसंभविण ॥ ९ ॥ अहो लोयहो सुयपंचमिविहाणु इउ जं तं चिंतिय सुहनिहाणु । दूरयरपणासिय पावरेणु एह जा सा बुच्चइ कामधेणु । फलु देइ जहिच्छिउ मत्तलोइ चिंतामणि वुच्चइ तेण लोइ । एह जा सा वुच्चइ भुवणसंति अह मुक्खहो सुह सोवाणपंति । नरनारिहि विग्ध अवहरेइ जो जं मग्गइ तहो तं जि देइ । निव्वाहइ जो नियसिविभरेण सो पुन्नवंतु किं वित्थरेण । उववास करइ जो सत्तसट्ठि उज्जमणि तहो सुहि तुट्ठि पुट्ठि । जइ भज्जइ अंतरि विग्घु होइ तहु सद्दहाणि फलु तं जि तोइ । घत्ता । अहो कि बहुवायावित्थरेण एक्कवि चित्ति महत्तरिण । अणुमोएं ताहिं तिहुं संपन्न गुणंतरिण ॥ १० ॥ अरिउरि अइरावइ दीहरच्छि धणयत्तहो गेहिणि धणयलच्छि । उज्जमियताएं चिरु संजुएण भाविय धणमित्तं तहिं सुरण | तह कित्तिसेण नामुज्जयाइ अणुमोइय वज्जोयरसुआइ । तो फणि ताए तिणिमि जणाई चउथह भवि सिवलोयहो गयाई । पहिलs धणयत्तहो धणयदित्ति इयरइ बिन्निवि धमित्त कित्ति । बिज्जइ भवि पंकयसिरि सरूअ सुउ भविसयत्तु भविसाणुरूअ । तियलिंगु हणिवि तिन्निमि सुतेयपहचूलरयणचूलाइ देव । ass भवित्तु वि कणयते हुउ दहमहं तहिं जि विमाणि देउ | चउथइ भवि सुवपंचमिफलेण निद्दड्डु कम्मु झाणानलेण । धत्ता । निसुतपढतहं परिचितंतहं अप्पहिय । धणवालिं तेण पंचमि पंचपयार किय ॥ ११ ॥ १ C adds इय भविसत्तकहाए पयडियधम्मत्थकाममोक्खाए बुहघणवालकयाए पंचमिफलवण्णणाए कमलसिरिभविसदत्तभविसाणुरूवमोक्खगमणो णाम बावीसमो संवी परिच्छेओ सम्मतो | समत्ता भविसयत्तकहा ।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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