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________________ एकूणवीसमो सन्धी। १५३ जिम जिणमइ पंचमहावयाइं अणुवयगुणवयसिक्खावयाई । सायारमणायारिविणिओइ तउ कहिउ दुविहु बारसविहोइ। इहरत्ति परत्तिवि बहुपमाय जिम ते सोलहविह चउकसाय । जह तिण्णिवि लेसउ तिन्नि वेय बंभत्तणु तिउणियसहिभेय । पंचिंदिय पंचपयारु जाणु पंचाणुत्तर पंचविहु नाणु । पंचासय पंचपयारचक्क आवासद्व्व जीवहं तिछक्क । घत्ता। छक्खंड विसेस छक्कालाण सारसमय । दस धम्मवियप्प अट्ठ महामय सत्त भय ॥१४॥ अट्ठविहकम्मसंकेउ होइ सउ अट्ठयालपयडिहिं समेइ। तह सत्ततत्तकारणकयत्थ नव नोकसाय नव नयपयत्थ । थिउ जेम अगाइ अणंतु कालु अवसप्पिणिउवसप्पिणिविसालु। जिम तित्थु तिसहि महाचरित्त चउगइभवसंगमगइविचित्त । अट्ठाइयदीवोवहिपमाणु नारइयतिरियदेवाउमाणु । पन्नारसकम्मधरा पएस तेरस चरित्त किरियाविसेस । एमाइमुणिदिं कयपयास पायडिय जिणागमि समयभास । इउ पढइ सुणइं जो कयपयासु कम्मक्खउ बोहि समाहि तासु । जिणधम्मसवणु निसुणिवि पवित्तु मुनिवयणि वलिउ नायरहं चित्तु। घत्ता । मुणिवयणवियारि सरसवियप्पदिन्नमइहिं । अवलोइउ मंतिवयणु सुविन्भमु नरवइहिं ॥ १५ ॥ मुणिवयणु सुणिवि मणगोयरेण नरनाह वुत्तु वज्जोयरेण । अहो देवदेव मुणिवयणु चारु सच्चउ गउ सुअसायरहो पारु । निरविक्खु देक्खु परलोयभीरु वयनियमसीलसंजमसरीरु । उवसंतकसायहं नरह रम्मु जो एण दिहु सो परमधम्मु । कोसिउ तावसु अन्नाणु मुक्खु अमुणियपरमागमु जडु अवक्खु । तणु तवइ जइवि वढेकगाहु अन्नाणु तोवि जुत्तिए अणाहु । गुरु कज्जइ जो बिहुँ गुणपवित्तु जसुतणउं वयणु बहुमइविचित्तु । जो पुणु अप्पुणु अवियड्ड देव सो परहो करइ अवबोहु केम। तं मंतिवयणु परलोयइटु नायरहं नवर हियवइ पइछ ।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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