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________________ एकूणवीसमो सन्धी। १२९ सहि गुणमाल नाम तहि पक्खिय ताए वियक्खणाई उवलक्खिय । वत्ता । पिक्खेविणु ताहि अंगई मयणायल्लियई। अविसुद्धमणाइं विविहवियप्पई वोल्लियइं॥३॥ गुणमालए धणमित्तहो कतई परिपुच्छिय परिहासपवित्तई । सहियरि निरु विवणम्मण दीसहि किं उज्जवणउं किंपि सिलीसहि । दुप्पइदुग्घरवासपियम्मइं घरि सिक्खविय किंपि किं अम्मइं। किं सो कमठु कहिमि संपाइउ तेण अवक्खु किंपि उप्पायउ । किसियई तुहु मुद्धि बाहुलयई सिढिलइ परिभमंति मणिवलयई । केसकलाउ खंधि ओणल्लइ परिमोकलु नियंबि आयल्लइ । फुटइ अहरु सुसइ मुहपंकउ नयणई नउ जोयंति असंकउ । हलि सहि अन्न भंति महु दिजइ विणु विरहिं नउ पंचमु गिज्जइ । सहि म रुसिज भणमि पई भत्तिं किं अवलोइय केणवि धुत्तिं । घत्ता । जं चालिउ मम्मु बालइं तं अवहेरि किय । धणमित्तहो पत्ति पुच्छइ गाहु करेवि तिय ॥४॥ आसंघइ करु करिण धरेप्पिणु पुच्छिय जं असगाहु करेप्पिणु । तं दिसि पासु निइवि परियच्छई बुच्चइ मंतिसुअई मइंदच्छई । सहि म रुसिज्ज तुड्ड फुड्ड अक्खमि तिलमित्तुवि तउ गुज्झु न रक्खमि। तेण तरुणिमणमोहणचितिं हउं अवलोइय तउ वरइत्तिं । अच्छइ तासु पासि मणु मे रउ सुन्नड भमई कलेवरु सेरउ । तं निसुणिवि धणमित्तहो पत्तिए जंपिउ दरसविलक्खु हसंतिए। एक्कुवि तुहुं महु पाणसमिडी अण्णुवि हुअ वरइत्तहो निद्धी। एवहिं करहि किंपि जिं जाणहिं इच्छई जिम्ब सक्का तिम माणहिं । तुहं मंतिणहो धीय महरायहो जो परमेसरु नयरहो आयहो। महु पइ पुणु वणिवरु एक्कंगउ अण्णुवि जं तउ भाउवि चंगउ । जइ सो तुडु निरारिउ रुच्चइ तो कहि महु जं जाएवि वुच्चइ । घत्ता । तो मंतिसुआई थुत्थुक्कारिउ तं वयणु । मइ पियसहि तुद्ध अक्खिउ निययसरूवगुणु ॥५॥ जइ सुंदरि हउँ एहउ करेमि तो अप्पउ भूअहं बलि करेमि । महु सहिए ताउ रायाहिरम्मु सुविसुद्धइ कुलि निम्मलए जंमु ।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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