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________________ अडदहमो सन्धी १२५ कालंतरिण सावि ससिरोहिणि नहि उड्डयणहं मज्झि हुअ रोहिणि । घत्ता । बहुकालिं सावि तं विमाणु मिल्लेवि चुअ। नामेण सुतार होसइ तुम्हहं तणिय सुअ॥६॥ तं निसुणिवि गंजोल्लियगत्तउ मुणिचलणइं वंदिवि सकलत्तउ । पुणरवि तिं पएस परिसकइ णु आहरण लेवि जं सक्कइ । तहिं वणकील करिवि बहुभोग्गई सविमाणइं आयासि वलग्गइं। गयउरि अवइन्नई सुपहिट्टई साथदिं पुरलोएं दिट्टई। पट्टणि आवणसोह कराविय नरवरिंद विहडप्फड धाविय । कयपेसणहिं समुन्नयमाणहिं पुरउ निरुड जाणजपाणहिं । सुहिसयणहिं बहुतूरनिनहिं पुरि पइसारिय जयजयसहि । सम्माणि मणवेउ विचित्तहिं कंकणकडयमउडकडिसुत्तहिं । संपेसिय पियवयणई जंपिवि मुणिवरवयणाएसु वियप्पिवि । गिरिवरकडय सोवि संपाइउ उरउ सुवकु धम्मपहि लायउ। घत्ता। गउ घर मणवेउ नियवित्तंतु जणहो कहिउ । भविसुवि नियगेहि हरिसिं रज्जु करंतु थिउ ॥७॥ तहो तहिं रायलच्छि माणंतहो सुरलीलई बहुकालु गमंतहो । तहिं भविसाणुरूअमहएविहि पुत्त चयारि हूअ सुहसेविहि । सुप्पह कणयप्पह सूरप्पह चंदरासि समरंगणि दूसह । तार सुतार नाम बे दुहियउ पुन्निमइंदरंदससिमुहियउ। एक्कु पुत्तु धरणिंदु सुमित्तहि जाउ ख्वगुणसीलविउत्तहि । ताहिवि दुहिय तार उप्पन्नी सयलकलाकलावसंपुन्नी। घत्ता । वणिउत्तहं देवि कन्नहिं दिन्नई मंडलई। अणुहूअसुहाई सयण पणच्चिय गुंदलई ॥८॥ एम तासु बहुकालु गमंतहो गयउरि विविहविलास करतहो । पवरुजाणि आउ हयतमनिसि विमलबुद्धि नामेण महारिसि । तहो पुरखोहु करिवि गुरुभत्तिए भविसयत्तु गउ वंदण हत्तिए। वरकरितुरयथडय चउपासिहि परिवेढिउ सामंतसहासिहिं । भविससुमित्तपमुहसुहसेविहिं चलिउ समाणु सहिउ महएविहिं । हरियत्तुवि समाणु नियलच्छिए धणवइ कमलई कमलद्लच्छिए। भूवालुवि कुवलयदलनित्तइं पियसुंदरिए समउ पियवत्तए ।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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