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________________ सत्तदहमो सन्धी। १२१ अहो दुवक किं बहुवित्वारिं हउं जाणमि नियमइअणुसारि । सो तिहुं दिणहं मज्झि नउ आवइ अजवि दियहा केवि चिरावइ । कि अलियउ वेयारहिं राणउँ गाणहाँ पच्चउ होइ पहाणउं । तुहुं धिट्टत्तणेण पहु जंपहि सुवियक्खणहं मज्झि विग्गुप्पहि । घत्ता । वुत्तु दुवक्केणं तुज्झुवि मज्झुवि तुडि किजइ। जोवि हु अलियउ होइ तहो जीव लोइ फेडिजइ ॥६॥ बेवि सरोस निवारिय राएं तुम्हहं विहिंमि काइं पडिवाइं। पुच्छुहु अन्न कोवि जो जाणइ सो तुम्हहं विवाउ पत्ताणई। , पहुवयणेण बेवि गय तित्तहि जक्खभवणि सो खुल्लउ जेत्तहि । पुच्छिउ बिहिंमि पणामु करेप्पिणु महुरालावहिं हियउ हरेप्पिणु । अहो सुहि तउ दंसणि अणुराइय अम्हइं पहुआएसि आइय । हुवउ भवीसु लोइ तुहुं जाणहिं फेडहि भंति मणहं पत्ताणहिं । सिंहलदीविं गुरुअणुराएं पेसिउ अग्गिमित्तु जो राएं। सो तहिं अजवि काइं चिरावइ कारणु काई जेण नउ आवइ । घत्ता । तो आएसिउ तेण सरलसहावसरुवें । अकयवियप्पेण दक्खिन्नपरव्वसिहूवें ॥७॥ राएं जो आएसिं पेसिउ तेण असेसु कोसु विद्धंसिउ । अच्छइ अविणयमइउभंतउ जूअकीलवरवेसासत्तउ। सामिहितणउं कज्जु अवहारिउ तं धणु तेण जूए संघारिउ । एसइ दिणि तीसमई असंगहो जरकप्पडणेवत्थपरिग्गहो। तं निसुणेवि सुकेसहि नंदणु मउलियवयणकमलु थिउ दुम्मणु । विमलुमंति पफुल्लियवत्तउ उहिउ पुलयपसाहियगत्तउ । बेवि नरिंदत्थाणु पराइय राएं अणुराएं निज्झाइय । पुच्छिय बेवि करिवि उवलक्खणु काई कहइ नेमित्ति वियक्खणु । घत्ता। विमलु महामइ थिउ तुण्हि करेविणु पक्खइ। वासवनंदणु पहुपुरउ समारिवि अक्खइ ॥ ८॥ मासिं कहिउ तेण तहो आगमु अह को जाणइं तं परमागमु। जइ तीसमई दियहि सो एसइ तो तं तहु फल पायडु होसइ । जं संदेहु कहिउ तहो विपि राणउं तं दूसिउ दुवियप्पि । पुच्छिउ विमलमंति सुमहत्तर तेणवि तहो वजरिउ सवित्थरु ।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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