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________________ पंद्रहमो सन्धी धत्ता । महदाणई देवि नायरजणजणिअच्छरिउ । जयतूररवेण लीलई नयरहो नीसरिउ ॥ १६ ॥ पुरहो पयाहिण देवि सुसाहणु पुणु संचल महागयवाणु चंचिवि थोवंतरु आसन्नई हुअहं जाई तहिं ठाइ विहिन्न । विज्जाहरु नरिंदु इक्कासणि भविस सुमित्त बेवि अवराणि । एम विहोएं ताम निविट्ठ नायरियायणेण चिरु दिई । जयजयकार करंतिं लोएं चडिउ विमाणु गयणि अन्भोएं । नहि जंतई पिक्खतिं महियलु जलकल्लोल दिंतु सायरजलु । जणु पिक्खंतु ताम थिउ रम्मई जाम हुअई नयणहंमि अगम्मई | खंचिवि तिलयदीवि अवइन्नई चंदप्पहजिणभवणि पवन्नई । धत्ता । तहिं जाएवि तेण धणवइसुइ किउ आयरिण । जिणन्हवणविहूइ पारंभिय सव्वायरिणे ॥ १७ ॥ पञ्चदश: सन्धिः । सिरिचंद पहना दीवंतर भविसनरिंदि । अहिसिउ कल्लाणि परमेसरु जेम सुरिंदि ॥ विज्जाहरु वेयडूगिरिंदहो संवाहइ अहिसेउ जिणिंदहो । पयघयहिमंगलजलकलसिहिं बहुनिम्मच्छणाई सविसेसिहि । धूवफुल्लबहुदीवंगारई रमणई रमिय अणेयपयारई । नियविज्जाबलेण पवियप्पइ सई सुमित्तमहएविहिं अप्पर । भावयत्तदोहलयनिमित्तिं पिक्खइ मणवयकायपवित्तिं । भविसयत्तु जिणपडिम पसंसिवि पुरउ परिट्ठि नाहु नमसिवि । उत्तारियड असेसउ मालउ बहुपरिमलसुअंध सोमालउ । सुरतरुपमुहपसूअहं ईयउ नरसुरविज्जाहरकररइयउ । उत्तमसंगिं जइवि पवत्तिउ तोवि सिरि करिवि वासि पक्खित्तउ । धत्ता । निम्मज्जेवि जगनाहु गुरुवयणु वियप्पिवि सारु । कयमहिमारंभ पहु अंचइ विविहपयारु ॥ १ ॥ मणवयकायनिवेसियचित्तिं पवरधूववासेण विचित्तिं । ११३ १ C adds इय भविसत्तकहाए पयडियधम्मत्थकाममोक्खाए बुहधणवालकयाए पंचमिफलवण्णणाए भविसदत्ततिलयपुरि दोहल्याणिमित्तगमनं नाम पंद्रहमो सन्धी परिच्छेओ सम्मत्तो ॥ २ A निम्मल्ले वि. १५
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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