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________________ चमो सन्धी । दुवई । तो भविसाणुरूअ अवलोएवि संभासिय नरिंदिणा । अच्छरकोडि सहिय रइमंदिरं नं सह सह सुरिंदिणा ॥ तो भविसइ भवियत्तहो सुआई मालइमालाकोमलभुआई । कुवलयदलदीहरलोयणाई मालूरपिक्कपीवरथणाई | अप्पिय चूडामणिनाय मुद्द सुहिसमुह दिट्ठ दुरियहं रउछ । मणिमउडि कुंदि कुसुमहं करेवि वियसंति संति उल्लव देव । तोणीरहं तुडु अणुप्पमाण होसंति अणिट्ठिय समरि बाण । सरधारिहि वरिसिवि जेम मेहु जसधवलधूलि धूसरियदेहु । भुअबलबलेण परबलु जिणेवि आवहि वइरियजयलच्छि लेवि । तो चलतरलावियलोयणाई कंदष्पष्पपियमाणणाई | अवलोइड पिउ पियसंभमाई नरवइभूवालतणुब्भवाई । तेवि बहुकज्जकयक्खणेण रइसन्नई सम्माणिय भणेण । नीसरिउ सरिउ जसरसि तुरंतु सज्जणदुज्जणमि भउ करंतु । निज्जावओ व भडथडसमुद्दि नरवई आरूढु महागईदि । धत्ता । रणभूमि सरंहं चारु चरंतहं समरकज्जे उज्जुअमइहु । वरकरिणिहु करिणिउं सुहडहं घरिणिउं सिक्ख दिति नियनियपइहु ॥ १०॥ दुवई । पभणई कावि कंत पिय वहइ अवसरु अप्पमाणहो । निक्कर करहि अज्जु समरंगणि पहुसम्माणदाणहो || १०१ कोवि भई रणि चडिवि पमाणहो निक्कर करमि सामिसम्माण हो । कोवि भणई पिए पई वि न भुंजमि जइवि न तिलयनाहु रणि रंजमि । कोवि भई नवि बंधमि फुल्लई जाम न वइरिमुहइ ओहल्लाई । कोवि भाई अहं सइ आवहमि अह जुयरायदंडु दलवहमि । कायरघरिणि कावि परिवेयइ होउ बलिक्कियाए पहु सेवए । जित्थु अऊरइ कालि मरिज्जइ काई तेण विहवेणवि किज्जइ । सामिणि मा ए सवक्खु सरिज्जहि महु केतहो जंघाबलु दिजहि । सोवि भई किं सामिणि वुच्चइ महु जंघाबलि कुवि न पहुच्चइ । केम पमाउ दूरि वग्गतहो परसंसउ पओलि निग्गंतहो । एम समरुवावारु विट्टिवि निग्गय नरवरिंद संघद्दिवि । धत्ता । अवलोइड साहणु हयगयवाहणु भविसयत्त भूवालपहु । थिय समरु समुडिवि रणपिड्ड मंडिवि पडिगाहिवि जयलच्छि लहु ॥ ११ ॥
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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