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________________ भविसयत्तकहाए तं वयणु सुणिवि चित्तंगएण पहु पणिउं रोसवसंगएण । घत्ता। अहो कन्नहो कारणि काई महारणि जाय तुम्ह विवरीय मइ । अजवि पियवत्तई एक सुमित्तई हउं परिओसमि पुहइवइ ॥ ११ ॥ दुवई । तो सुंडीरु वीरु वणितणुरुहु तहो वयणेण संसिओ। बहुगीढवराहु दप्पुब्भडे भड भेसिवि समुडिओ॥ अहो कालिं चोइउ काई एहु खन्जइ जिह पवणंतरियदेहु । खलु वारवार जंपइ अणि? अमणूसु एउ घरु एण दिहु । पुणु पुणुवि सुमित्तहि कयपणीह कप्पेविण करयलि धरह जीह । उक्खणिवि नयण छिदेवि नासु मुंडिवि सिरु खरि संजवहो दासु । पिक्खेवि कुमारहो वयणु कुडु चउपासिउ भडु किंकरिहिं रुडु। धणवइ विणिवारइ महुरघोसु आयहो उप्परि किजइ न रोसु। पडिभडह दृउ पडिसहु होइ आयहो पहरंतहो जसु न होइ। चित्तंगु नवर जंपइ सगव्वु मन्निवि तिणसमु अत्थाणु सव्वु । घत्ता । इयवयणपवाहिं सहुँ नरनाहिं कहिं महु जाहि अणिट्ठियउ। पर एण न मारमि रोसु निवारमि जं आएसिं पट्टविउ ॥ १२॥ दुवई । दुव्वयणई चवंतु पहुसन्नइं दप्पुब्भडसकोहहिं । अरि अरि जाहि भणिवि गलथल्लिउ घल्लिउ पवरजोहहिं । निग्गउ चित्तंगु अणंतु लेवि जुअरायकडइ संपत्त बेवि । अत्याणि नरिंदहो कहिय वत्त जिम गय जिम जंपिय जेम पत्त । न नवइ भूवालु महापयंडु नउ देइ कप्पु मिच्छइ न दंडु। तउ पक्खवायवयणिं कलेवि ओसारिउ तेहिं अणंतु सोवि। पंचालवयणु दूअइं सुणेवि ओसरिउ सुहड तिणसमु गणेवि । नरवइहिं नवर उप्पन्नु रोसु अवलोइउ नियभडबलु असेसु। दरिसहु कुरुजंगलि पलयकालु कुरुवइ उक्खिणहु समूलडालु। गयउरि पायारपओलिभंगु दर मलहु छुहिवि बलु चाउरंगु । हयभेरिपयाणउं नवर दिन्नु धरदल मलंतु संचलिउ सिन्नु । घत्ता । एत्तहिंवि महल्लहो अणिहयमल्लहो सुरकरिकरदीहरभुअहो । गयउरपुरवाले सहुं भूवालें बडु प? धणवइसुवहो ॥ १३ ॥ त्रयोदशः सन्धिः । १C adds इय भविसत्तकहाए पयडियधम्मत्थकाममोक्खाए बुहधणवालकयाए पंचमिफलवण्णणाए भविसदत्तरजपबन्धो णाम तेरहमो संधी परिच्छेओ।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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