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________________ बारहमो सन्धी पडिवन्नई वियालि वरविलयहिं सिजावत्ति किय नायभोय पल्लंकतूलि मुहसंजविय । पच्छाइयपडिपट्टि कुंदसमुज्जलेण कणयकिरणपरिवीटें सिंचिय निच्चलिण। जा समरसंगयमिहुणह रइचडणु सहइ जा सुअंधमयपरिमलवासिं महमहइ। सा वरसिज्ज समारिवि दिन्न पडिगाहय धूववत्ति उद्दीविय दीविय कणयमय। पण्णु फुल्लु हरियंदणु घुसिणु समाहरिवि सजलंतरि भिंगारहं सव्वउ धरिवि। एम नवर वरजुवइहिं वरवासहरु किउ निसि पओसि पडिवन्नई कुम्वरु __ कीलेंतु गउ। गाथा । एवं वरवासहरं पसाहिओ साहिऊण घरवइणो। सामियसुअस्स पत्ती संजविया रइविहारम्मि ॥१॥ तो सासुआइ सुन्हा भणियाओ चुंबिऊण भालयले। ए पुत्ति पिए ललिए सुहए ओ वच्च वासहरं ॥२॥ भणियं च तओ तीए अम्मे मे रइसुहेण पजत्तं । अन्नासत्तं कंतं को सक्कइ उज्जुअं काउं ॥३॥ भणियं च पुत्ति माणं नो कीरइ विप्पिए अणुप्पन्ने । मुढे अइसलिले एमेव न मुच्चए खेडी ॥४॥ घत्ता । अणियंतहो कंतहो लज्ज वहंतहो माणिणि माणउं जा करइ । तहिं तेण जि दोसिं अंतरि रोसिं सो पिउहत्थहो उत्तरइ ॥१२॥ दुवई । तं परमत्थवयणु पडिवजिवि चल्लिय मयणमंजरी। रसणादामरामरंखोलिर गय रइभवणि सुंदरी ॥ नियकंति पिक्खिवि वुन्न वुन्न परिपुच्छिय पणइणि किं विसन्न । परिपुन्नमणोरह तउ सुहेण इउ इत्तिउ चिंतिउ आसि केण । परमेसरि जा तउ चिरु मणोज इह मुद्द एह सा नायसेन्ज । जं विलसिउ दूसहु दुहनिहाणु तं विहिमि पुव्वकम्मेहिं जाणु। तं वयणु सुणेवि वरंगणाई सविलक्खु हसिउ दुम्मणमणाई। अच्छंतु ताम चिरु कीलियाई हसियई रमियई सुहपीलियाई। १ B करिवि. २ B कलत्तु. ३ B पइरहेण.
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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