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________________ बारहमो सन्धी । परिओसिउ जणु सुवियक्खणाई कमलई नवकमलदलक्खणाई | पुणु पुखेरि हियवइ धरेवि पह वुत्तु पुत्तु अंतरि करेवि । तुहुं मज्झु पुत्तु हउं तुज्झ माय पहुआणई पेसिय इत्थु आय । कुलमंडणू तुहुं धणवइहिं गोत्ति दिन कवि वसिउ महुताई पोत्ति । एव्वहिं बढारहिं निययवंसु कीलहि कुलसरवरि जेम हंसु । एति महु दुक्खु दुआसि देहि जं तुहुं न समप्पिउ निययगेहि । भंडारि पालेव्व निउत्तु न समप्पइ तं तह जइ अजुत्तु । इय जंपिवि निग्गय घरहो देवि अहिमाणु माणु हियवह धरेवि । तहिं पच्छइ सा भविसाणुरूअ संचल्लिय बहुगुणसारभूअ । देहि णियउ भडारिए करमि काई अम्हाण विहिमि एकई हियाई । नहु सक्कम सहिवि सवत्तिकूलि निवसिव्वर मई तउ पायमूलि । धत्ता । तो कमलई वुच्चइ पिम्मसमुच्चर को जाणई छेयंतरई । अह जइ मई मन्नई नवि अवगन्नई तो तउ परिहउ नउ करइ ॥ ४ ॥ दुबई । न मुवमि पइंमि जाहं जइ तुडुवि मणि संकेउ हओ । जाणमिह मि दुसह को सक्कइ सहिवि सवत्तिवेहओ । एवं भणेवि दोवि संचल्लउ अहरफुरंतवत्तओ । लीलागामिणीउ भविसत्तहो मामहु सालु पत्तओ । नववहुमुहनवल्लपियदंसणसुहरूवेण भासिओ । हरिवलयत्तगेहि विहडप्फड्ड जणु कोड्डेण धाइओ । हलि हलि पिच्छ पिच्छ मन्नरवहु कमलई समउ आइया । दुहिया सुयहो सुन्ह पिक्खेषिणु लच्छि मिमणि न माइया । ताहिवि दिट्ठ रत्त पोतंतरि सुएवि न कहिंमि वच्चए । सासुमहत्तराण पयजुयलउ करकमलेहिं अंचए । कोहलवसेण हरियत्तु वि वत्थंतरि विलुक्कओ । जइवि अपिच्छणिज्जु तो पिच्छमि कुलवहुवयणपंकओ । पढमसमागयाई कुलवहुअहिं जं जं किंपि किजए । तं कि ताहि तेहिं वरजुवइहिं मंगलगेउ गिज्जए । तो विसेवित्तु हरियन्तें पह किउ पुत्ति चंगओ । जं सजणह मज्झि नरनाहहो कड्डिउ नाहिं अंगओ । मज्झ महत्तराण न कयाइवि वंकवि वंकु वुच्चए ।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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