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________________ बारहमो सन्धी। कोक्किषि सपरिवार सम्माणिउं अहियमणाणुराइणो । महएविए सइं भविसाणरूअ जोइय जुवईयणि सारभू । दरसिवि अंतेउरि पिंडवासि पुन्जिय कुलमंगलसय निवासि । सम्माणिय वत्थाहरणु देवि आलत्त तिलयसुंदरि भणेवि । पुणु दिट्ट कुम्वरु जयलच्छिगेहु पहु पणिउं नउ सावन्नु एहु। दीसइ पडु पंडिउ गुणवरिष्ठ अनुमि महु निरु लोयणहं इट्ट । देखेव्वउ सुउ जुअराउ जेम राएं पडिवजिउ तं जि तेम । बहुगुण परियाणिवि पत्थिवेण नियसुअ सुमित्त तहो दिन्न तेण । कोकाविउ धणवइ सुहिसणाहु परिओसिं परिचिंतिउ विवाहु । घत्ता । जयमंगलघोसिं मणपरिओसिं तुंगगइंदि समारुहिउ । सुहिबंधवलोएं गरुयविहोएं भविसयत्तु नियगेहि गउ ॥१॥ दुवई । चुंबिवि उत्तमंगि सकलत्तउ निम्मच्छिवि सवासहिं । घरि पंकयसिरीहिं अहिणंदिउ बहुमंगलसहासहिं ॥ दुम्मणमणेण उन्भंतएण नियसुएण विएसि वसंतएण । जिणसासणदेविउ जाई जाइं अंतरि विविहई ओवाइयाई । चिरु कमलई सिट्टइं जाई जाई दिन्नई पडपडहरवेण ताई ताई। अनुमि भवियहं जा कामधेणु सुअपंचमि चिंतिय सुहनिहाणु । चिरु चिन्न आसि जा विहुरकालि उज्जमिय सावि सुहिसुहवमालि । जिणभवणइं पंच करावियाई उत्तुंगसिहरसिरिगावियाई। जिणहरि जिणहरि पंचतराई अंतरि अंतरि सिहरई वराई । दरिसिउ पंचविहु बहुपयारु वरपत्तकलसभिंगारसारु । जिणहरि णिहरि न्हवणहं कियाइं जिणहरि जिणहरि दिन्नई धयाई। जिणहरि जिणहरि भावियमणेण नीसेसरयणि जग्गिय जणेण । घत्ता । पंचव्विहवत्थई पंचमिसत्थई चिंधपडायालंकियई। दरिसियई अणेयई बहुविहभेयई केणवि गणिवि न सक्कियई ॥२॥ दुवई । एउ एत्तिउ करेवि गुणवंतहो जिणसासणि अलंघहो। पुणु विणएण दिन्नु वरभोयणु चउविहसवणसंघहो ॥ जो देइ दयावरु रसहिं सुसारु दाणु तिसुद्धिविसुद्धउ । सो अविचलु जाणु सुरहिंपहाणु होइ सुरिंदु समिद्धउ ॥ सलोणं समिद्धं न देहे विरुद्धं वरं सालिभत्तं सुधं सुसिद्धं ।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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