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________________ एयारहमो सन्धी बेवि ताम परिचिंतियलक्खउ कजाकजवियारणदक्खउ।। विविहवियप्पसएहिंमि गूढउ कुडिलवयणु पडिवयणअमूढउ । पुन्निमइंदरुंदमुहवंतउ बिपिणवि विहिंमि ताउ आणत्तउ। दीवंतरहो जुवइ जा आणिय जा खलबंधुयत्ति अवमाणिय । ताहि गंपि मुहकमलु निरिक्खहो वयणिं वयणवियारु परिक्खहो । विणएं इत्थु लएविणु आवहु चरियविसेसु पउरि संभावहु । तं निसुणिवि जयलच्छिए वुच्चइ सरलसहावहं जइवि न रुच्चइ । अम्हई तोवि पवंचु करिव्वउ सोवि तुम्हि खलु हियइं धरिव्वउ। विहसिवि हत्थुत्थुल्लिउ राएं विहसिउ तं जि पउरसंघाएं। मल्हंति बिनिवि संचल्लउ मयपरिमलगंजोल्लियगत्तउ । कीलंतहं तं भवणु पईसिवि दिह जुवइपरियणु मं भीसिवि । हे जुवाणजणमणविद्दारणि पुरु संदेहि चडिउ तउ कारणि । मुहइ तुज्झु गउ छेयहो माणउं लइ जोयहि दप्पणु अप्पाणउं । माणिणि माणि तरुणु कुसुमाउहु वलिवि न दिहु कज्जु विवरामुहु । बंधुअत्तु राएं सम्माणिउं भविसयत्तु जणि भग्गहो आणिउं । जावि तुज्झ चिरु आसि पियल्लउ परिहरि तोवि तासु आयल्लउ । अह तउ पक्खवाउ तउ तंडवि तो करि वयणु गंपि सहमंडवि। घत्ता । तो पढमउं ताहिं सव्वंगइ रोमंचियइं। पुणु झसिवि गयाइं नाई विसाएं खंचियइं॥४॥ तं निसुणिवि चिंतवइ महासइ माइ कज्जु विवरेरउ दीसइ । अह एहउ जि किन्न संभावइ जं महु करइ तं जि जणु थावइ । लइ पइसरमि परजणविंदहो वयणु करमि अत्थाणि नरिंदहो। अवसरु अस्थि मरणसंकेयहो जइ पइज निविडइ न छेयहो। खेविउ एत्तिउ कालु पियासई एवहिं लज्जाकज्जु विणासइ। इउ चिंतंति वियक्खणजुवइहिं ओलक्खिय उवलक्खणसुअइहिं । न किउ वयणु संचलिय मडक्का पइपरिहवदुव्वयणचडक्कइ । घत्ता । परिहरिवि निओइ ससुरजिट्ठदेवरवि सय। पइपरिहवरोसि विप्फुरंति पहुपुरउ गय ॥५॥ तो वेगिं जयलच्छि पधाइय सहमंडवि अत्थाणु पराइय। नरवइ नियड होइ आहासइ देव देव निरविक्ख महासइ । अम्हइं विसरिसवयणवियप्पिय आवई निरु आवेसवियप्पिय।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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