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________________ भविसयत्तकहाए हा पुत्त जंतु विणिवारियउ ताएं बहुवारउ वारि यउ । हा एहई कहिंमि मुहुत्ति गउ जं वलिवि न दिहु पुणन्न मउ । हा पुरि छणदियहु समावडिउ महु दीणहि दुव्वसंतु पडिउ । हा मिलिय सयलसयणहं सयण हर्ड मुद्ध एक पर दीणमण। हा पुत्त बाल कीलई सुहई एवहिं ताइंमि विनडंतु मई। हा पुत्त होउ दिहि दुजणहो किम वयणु निहालमि सजणहो। घत्ता । हा पुत्त पुत्त पइं दुत्थियइं खलखुद्दहं घणु वरिसिउ हियई। मह पुणु पर एवहिं जिणु सरणु लइ होउ समाहिए सहं मरणु ॥१३॥ तं कूवारु सुणिवि दोमियमणु विभिउ कर मलंतु नायरजणु । दुम्मणवयणु कहइ अन्नोन्नहु पिक्खहु एउ काई आयन्नहो। दारुणु रुअइ धीय हरियत्तहो न मुणहं किंपि जाउ भविसत्तहो । को वि भणइं जइ एहउ जायउ तो धणवइहि चित्तु विच्छायउ । को वि भणई एउ को पडिवजइ आएं वद्धावणउ न छजइ । तं निसुणिवि अन्निकिं वुच्चइ मंछुड्डु एउ सरूवहिं रुच्चइ। जाय बोल्ल धणवइहिं घरंगणि ताहि वि संक पईसइ नियमणि । एउ न जाणहं काइंमि कारणु रोवइ कमल सदुक्खउ दारुणु । घत्ता। हा विहि अजुत्तु मइं सिक्खविउ आएं मंछुडु तं तेम किउ । किउ वयणु सरूवहि दुम्मणउं अवलोइउ मुहं पुत्तहोतणउं ॥ १४ ॥ तो पुरवइ गलिअंसुपवाहिं पुच्छइ बंधुयत्तु असगाहिं । अहो जइ भविसयत्तु अच्छतउ तो वइ सोहलउ महंतउ । भणई सरूअ पुत्त फुड अक्खहि एवडंतरि गुज्झुन रक्खहि । नंदणु भणई अम्मि को जाणइं सो थिउ दीविं तहिं जि पयाणइं। अम्हहंसिय देखणहं न सका परिहउ माणु वहइ सकलंकइ । थक्कु पइज करेवि अयाणउं नउ घरु जामि निरन्नयमाणउं । तो धणवइ मणाउ अवमाणिउं विरूअउ कियउ जन्न समाणिउं । एवहिं जो अवमाणिं थक्कर तहो आणिवि सको वि असका। घत्ता। तं वयणु सुणेवि तवंगि थिय भविसाणुरूअ मणि पजलिय । लइ कहमि सयलु एयहो चरिउ अणुहवउ किंपि दुन्नयभरिउ ॥ १५॥ पुणु वि दीहु चिंतवइ महासइ आएं पइहरि कज्जु विणासइ । वरि अप्पाणु हणेविणु घाइउ मं पइभवणि दोसु उप्पायउ ।
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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