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________________ पञ्चमो सन्धी। पुणु वि पुणु विमं भीसिवि मिल्लिय अच्छमि तेण इत्थु इक्कल्लिय । सुंदर तुहु वि खणु वि मं थक्कहि लहु मइ लेहि जाहि जइ सक्कहि । अहु कुलधवल एउ दरिसावहि अन्नहो जणहो मज्झि मेलावहि । घत्ता । तुहुं दीसहि कोवि धीरु वीरु विक्कमचरिउ।। नउ जाणहं केम इत्थु दुसंकडि अवयरिउ ॥ १३ ॥ तं निसुणिवि पंकयसिरिपुत्तिं विहसिउ सीलकुलकमजुत्तिं । हे पसयच्छि कहिउ पई चंगउ महु अच्छेरयविभिउ अंगउ । हउँ मि इत्थु दइविं संजोइउ नियबंधवसयणहिं विच्छोइउ । जेण समाणु वणिज्जें आयउ तेण जि वणि घल्लिउ असहायउ । सेरेउ दीविं दीउ भमंतउ वलणिं तउ मंदिरि संपत्तउ । एवहिं दूरि दुरिउ विसजहि अभउ अभउ भउ सयलु विवजहि । तुहं वणिवरकुमारि कुलि पुंगले हउं वणिउत्तु देसि कुरुजंगले । विहिवलणं संघडिउ समागउ मंच्छुड्डु होसइ सयलुवि चंगउ । घत्ता । तं निसुणिवि ताहे अंगग्गइं आहल्लियई।। सज्झसिवि गयाई मयरडयसरसल्लियई ॥१४॥ ताम तरलतरलावियनयणई सज्झसवसमउलावियवयणइं । विन्भमहावकडक्खणसीलई वम्महसरसंपेसणलीलई। परपेरियमणाई जंपिजइ जं ठिउ तुरिउ किन्न तं किजइ । पभणई वीरचरितु अकंपिउ चंगउं पइं पसयच्छि पयंपिउ । अह मह मुद्धि परिप्फुडमाणहो अत्थि निवित्ति अदत्तादाणहो। जाम्वहिं मझु को वि पई देसइ तामहिं सव्वु तेम तं होसइ । अह नउ देइ कोइ तउ अंगउ तो अम्हहं साहम्मियसंगउ । घत्ता । तो चिंतिउ ताए एहु कोवि सामन्नु नवि। संवरिउ वियारु नहि अत्थवणहो ढुकु रवि ॥ १५ ॥ ताम ताई परिहासपवित्तई निम्मलसीलकुलकमजुत्तई । इच्छावसरनिरोहु किलंतई आसणि सयणि वयणि अमिलंतई । नियकुलमग्गायारु सरंतई चंदप्पहजिणमहिम करंतई । थियई बेवि गंजोल्लियगत्तई दियहई केवि जाम संपत्तई । ताम थक्कइ विहुरु पवजिउ महि थरहरिय गहिरु नहि गजिउ । १ B सेउरु
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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