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________________ तुम उन्हीं की श्रृंखला हो। उन्हें मूढ़ मत कहो। क्योंकि अगर वे मूढ़ थे तो तुम भी मूढ़ हो। क्यों वे बीज थे, तुम उन्हीं के फल हो । और मूढ़ता के बीजों में ज्ञान के फल नहीं लगते। उन्हें अंधविश्वासी मत कहो; अन्यथा तुम आते कहां से हो? तुम उन्हीं की श्रृंखला हो। तुम उन्हीं का सातत्य हो। तो इतना ही हो सकता है कि तुमने शायद अपने अंधविश्वास बदल लिये हों लेकिन अन्यथा तुम हो नहीं सकते। हो सकता है वे धर्म के शास्त्रों में मानते थे, तुम विज्ञान के शास्त्रों में मानते हो। लेकिन अंधविश्वास तुम्हारा कुछ बहुत भिन्न नहीं है अगर वे अंधविश्वासी थे तो तुम भी अंधविश्वासी हो । बड़े मजे की बातें हैं। लोग पुराने, प्राचीन शास्त्रों में अंधविश्वास खोजते हैं। कहते हैं, ईश्वर दिखाई नहीं पड़ता। हो तो दिखाओ दिखाओ तो मान लें। और जब आधुनिक भौतिकी कहती है, आधुनिक भौतिकशास्त्र कहता है कि इलेक्ट्रान है और दिखाई नहीं पड़ता, तब ये संदेह नहीं उठाते। तब ये डा कोवूर और इस तरह के लोग फिर संदेह नहीं उठाते कि यह बात हम कैसे मान लें? कि तुम कहते हो है, और दिखाई नहीं पड़ता । है तो दिखा दो । किसी वैज्ञानिक की क्षमता नहीं है कि इलेक्ट्रान को दिखा दे। मगर वैज्ञानिक कहता है, है तो। क्योंकि हम उसके परिणाम देखते हैं। यही तो पुराने शास्त्र कहते हैं कि परमात्मा नहीं दिखाई पड़ता लेकिन परिणाम दिखाई पड़ते हैं। यह देखो, इतनी बड़ी व्यवस्था, यह इतना बड़ा आयोजन ! और क्या प्रमाण चाहिए? तुम जाओ मरुस्थल में और तुम्हें पड़ी हुई एक घडी मिल जाये हाथ की साधारण जेबघडी या हाथ घडी। तुम्हें कोई भी दिखाई न पड़े, दूर-दूर मरुस्थल तक कहीं कोई पदचिह्न न मालूम पड़े तो भी तुम कहोगे कि कोई मनुष्य आया है जरूरा यह घड़ी कहां से आई? तुम यह तो न मान सकोगे कि सिर्फ सयोगवशांत यह घड़ी अपने आप निर्मित हो गई है। टिक-टिक घड़ी अब भी बजा रही है समय को। क्या तुम यह मान सकोगे कि संयोगवशांत ? अनंत- अनंत काल में संयोग से यह घड़ी निर्मित हो गई है, कोई बनानेवाला नहीं है? तुम न मान सकोगे। एक घड़ी तुम्हें मुश्किल में डाल देगी| तुम लाख मनाने की कोशिश करो, फिर भी घड़ी कहेगी कि कोई बनानेवाला है। फिर भी घड़ी कहेगी, कोई आदमी यहां आ चुका है। तुम घड़ी को देखकर यह बात नहीं मान पाते कि यह अपने आप बन गई और तुम इस विराट विश्व को देखकर कहते हो कि अपने आप बन गया ! ये चांद-तारे, यह सूरज, यह जीवन, यह इतनी अपूर्व लीला, यह इतना जटिल जाल इतनी सरलता से चल रहा है। नहीं, कोई दिखाई नहीं पड़ता । कोई हाथ साफ मालूम नहीं पड़ते । पुराने शास्त्र कहते हैं, होंगे जरूर; होने चाहिए। परिणाम दिखाई पड़ता है। वही तो आधुनिक भौतिकशास्त्री कह रहा है कि इलेक्ट्रान होना तो चाहिए क्योंकि उसका परिणाम दिखाई पड़ता है। हिरोशिमा में परिणाम देखा न ? अब कौन इंकार करेगा? कैसे इंकार करोगे? भौतिकशास्त्री कहता है कि हमने देखा, अणु का विस्फोट हो सकता है। विस्फोट का परिणाम हुआ कि एक लाख आदमी जलकर राख हो गये। परिणाम साफ है। मौत घट गई, तुम अब इंकार कैसे करते हो?
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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