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________________ भगवान कोई वस्तु नहीं है, जो तुम्हें कोई दिखा दे अंगुलि के इशारे से कि ये रहे। भगवान तुम्हारे ही भीतर छिपी दुई, तुम्हारी ही आखिरी परम शुद्धि की अवस्था है। तुम्हारे ही भीतर प्रेम का प्रगट हो जाना परमात्मा का प्रगट होना है। इसलिए तुम अगर बाहर कहीं खोज रहे हो तो कभी न खोज पाओगे। खोजो मंदिर-मस्जिद में, काबा- कैलाश में, तुम न खोज पाओगे। तुम गलत खोज रहे हो। वहां परमात्मा नहीं है। तुम अगर सोच रहे हो कि परमात्मा कहीं आकाश में बैठा है तो तुम मूढ़तापूर्ण बातें सोच रहे हो। तुम्हारे परमात्मा की धारणा बहुत बचकानी है। तुम पूछते हो, भगवान क्या हैं? 'क्या' का प्रश्न नहीं है। तुम्हारे भीतर जिसने यह प्रश्न पूछा है, तुम्हारे भीतर से जो मुझे सुन रहा है, तुम्हारे भीतर से जो मुझे देख रहा है, उसको ही पहचान लो और भगवान से पहचान हो जायेगी। अपने ही चैतन्य के साथ थोड़ी दोस्ती बनाओ, मैत्री बनाओ। यह कौन तुम्हारे भीतर चैतन्य है? बस इसी को तुम खोज लो। यह एक किरण जो तुम्हारे भीतर चेतना की है, होश की है, इस एक किरण का सहारा पकड़ लो, फिर तुम परमात्मा तक पहुंच जाओगे। मैंने सुना है, एक सम्राट अपने वजीर से नाराज हो गया। और उसने वजीर को एक बहुत ऊंचे मीनार पर कैद करवा दिया। उस मीनार से कूदने के सिवाय और कोई बचने का उपाय न था। लेकिन कूदना मरना था। मीनार बड़ी ऊंची थी। उससे कूदे तो मरे। कोई हथकड़ियां नहीं डाली थीं। वजीर को हथकड़ियां डालने की जरूरत न थी। वह मीनार के ऊपर कैद था। सीढ़ियों पर सख्त पहरा था। सीढ़ियों से आ नहीं सकता था। हर सीढ़ी पर सैनिक था । द्वारों पर कई द्वार थे, द्वारों पर ताले पड़े थे। मगर उसे खुला छोड़ दिया था मीनार पर। जब सब रो रहे थे, प्रियजन उसे विदा दे रहे थे, उसकी पत्नी ने कहा, हम इतने रो रहे हैं और तुम इतने शांत हो। बात क्या है? उसने कहा, फिक्र न कर। अगर तू एक रेशम का पतला धागा मुझ तक पहुंचा देगी तो बस मैं निकल आऊंगा। वह तो चला गया वजीर, कैद हो गया। पत्नी और मुश्किल में पड़ गई कि रेशम का धागा ! पहले तो पहुंचाना कैसे? सैकड़ों फीट ऊंची मीनार थी, उस पर रेशम का धागा पहुंचाना कैसे ? और फिर यह भी सोच-सोच परेशान थी कि रेशम का धागा पहुंच भी जाये समझो किसी तरह, तो रेशम के धागे से कोई भागा है? बहुत सोच-विचार में पड़ गई, कुछ उपाय न सूझा तो वह गांव में के बुद्धिमानों की खोज करने लगी। एक फकीर ने कहा कि इसमें कुछ खास मामला नहीं है । भृंग नाम का एक कीड़ा होता है, उसको तू पकड़ ला। उसकी मूंछ पर शहद लगा दे। और भृंग की पूंछ में पतला धागा बांध दे रेशम का उ
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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