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________________ वह आदमी ही कुछ अजीब था। लेकिन दोनों की भविष्यवाणियां पूरी हुईं। छह बार खलीफा के पास यह खबर पहुंचाई गई। बार-बार, छह बार खबर पहुंचाई गई कि मंसूर को फांसी दे दी जाये क्योंकि यह कुफ्र की बातें कह रहा है। यह इस्लाम के खिलाफ है। लेकिन खलीफा कहा, अगर ऐसा हो तो उसके गुरु का दस्तखत चाहिए। अगर गुरु भी कह दे कि इस्लाम के खिलाफ है, तो ठीक। तो के गुरु पास छह बार दस्तावेज लाई गई और गुरु ने कहा कि नहीं, मैं दस्तखत नहीं करूंगा। सातवीं बार खबर आई कि अगर अब गुरु दस्तखत न करे तो तब गुरु भी जिम्मेवार है। फिर वह भी हिस्सेदार है। तो गुरु को भी शर्म लगी कि अब सूफी का वेश पहने कैसे दस्तखत करूं? यह तो सूफी के वेश की भी बदनामी हो जायेगी। तो वह भूल गया भविष्यवाणी मंसूर की। उसने कहा, अगर इस पर मुझे दस्तखत करने हैं तो मैं मौलवी के कपड़े पहनकर ही दस्तखत कर सकता हूं। यह मौलवी को ही शोभा देता है इस तरह की मूद्रतापूर्ण बातें, सूफियों को नहीं शोभा देता। तो उसने कपड़ा अपना फेंक दिया, मौलवी के कपड़े पहने और दस्तखत किये। और जब मंसूर को खबर मिली तो वह हंसा। उसने कहा, मैंने कहा था न ! अब रंगा जायेगा खून से मेरे। अब तक नहीं रंगा जा सकता था। लेकिन यह कैसी बुरी दुनिया आ गई कि सूफी भी मौलवी के कपड़े पहनने लगे। तांत्रिक स्वर का अर्थ होता है, तुम्हारे भीतर परमात्मा की उदघोषणा । शरीर तक तो तुम्हारा ही स्वर नहीं है। मंत्र में तुम्हारा स्वर है, तंत्र में परमात्मा का स्वर है। अक्षर से अक्षर तक की यात्रा । शरीर में यंत्रवत-तुम भी नहीं बोले अभी, परमात्मा की तो बोलने की बात ही दूर, तुम ही नहीं बोले। अभी तो बोल ही नहीं फूटा । पहले तो तुम बोल का अभ्यास करो। पहले तो तुम सितार के तार बिठाओ, ठोंका -ठाकी करो, सब व्यवस्था कर लो, तब परमात्मा बोलता है। पहले तुम बोलो तो परमात्मा बोलता है। अभी तुम्हीं नहीं बोले। अभी तुम्हीं मुर्दा की तरह जी रहे हो, मिट्टी के ढेर हो एक, तो परमात्मा कैसे बोले ? मंत्र में तुम बोले। तुम्हारा बोल उठा। तुम्हारी वाणी खिली। तुम्हारा फूल खिला। तुम तैयार हुए मंत्र से तुम तैयार होओगे। मंत्र सचेष्ट, जागरूक चेष्टा है। मैं मंत्र के खिलाफ नहीं हूं। मैं यांत्रिक मंत्र के खिलाफ हूं। इसलिए कई बार तुम्हें हैरानी होती है कि मैं मंत्रों के खिलाफ बोल देता हूं। इसीलिए बोल देता हूं कि तुम्हारे मंत्र भी तुम जैसे हैं जैसे तुम दूकान करते, भोजन करते, वैसे तुम राम-राम जपते या अल्लाह- अल्लाह जपते, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता । जागरूकता से अगर तुम जप सको अगर जब तुम राम-राम जप रहे हो या अल्लाह- अल्लाह जप रहे हो तब तुम्हारे भीतर जागरूकता भी बनी रहे, इधर यह वाणी चलती रहे और उधर तुम होशपूर्वक, समग्र रूप से जागे ध्यानपूर्वक इस वाणी को सुनते रहो, तुम बोलो भी, सुनो भी; और दूसरी कोई प्रक्रिया न हौती हो तो फिर मांत्रिक । और जब ऐसा हो जाये तो एक दिन तुम पाओगे तुम तो जागे रह गये, वाणी धीरे - धीरे
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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