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________________ बन सको निरपेक्ष तो फिर क्या दुआ, क्या बद्दुआ है मन कहां है? क्या हुआ है? जैसे ही ज्ञानी अपने द्रष्टा में ठहरता, दृश्य से हटता और द्रष्टा में ठहरता-इसको मैं कहता हूं एक सौ अस्सी डिग्रीवाला रूपांतरणा पूरा वर्तुल घूम गया पूरा चाक घूम गया। हम बाहर देखते ज्ञानी भीतर देखता। हम आंख खोलकर देखते, ज्ञानी आंख बंद करके देखता। हम विचार से देखते ज्ञानी निर्विचार से देखता। हम मन से देखते, ज्ञानी अमन से देखता। उल्टी हो गई बात सब। हमारी ऊर्जा बहिर्मुखी, ज्ञानी की ऊर्जा अंतर्मुखी। हम बाहर जाते, ज्ञानी भीतर आता। बस, आंख बंद करके जो दिखाई पड़ता है, वही सत्य है। एक बार आंख बंद करके तुम्हें भीतर का सत्य दिखाई पड़ जाये, फिर तुम आंख खोलना। फिर बाहर तुम्हें परमात्मा दिखाई पड़ेगा, प्रपंच नहीं। और फिर कैसा बंधन? परमात्मा ही है! कैसा बंधन और फिर कैसा मोक्ष? उससे मुक्त होने का प्रश्न भी कहां है? हम उसके 'साथ एक हैं। वह हमारा स्वभाव है। वही हमारा रस है। 'बुद्धिपर्यन्त संसार में जहां माया ही माया भासती है, ममतारहित, अहकाररहित और कामनारहित ज्ञानी ही शोभता है।' बुद्धिपर्यन्तसंसारे मायामात्र विवर्तते। इस सूत्र को खूब ध्यान से समझना। निर्ममो निरहकारो निष्काम: शोभते बुधः।। दो शब्दों का भेद पहले समझ लो-बुद्धि और बुद्धत्व। अज्ञानी के पास बुद्धि है, ज्ञानी के पास बुद्धत्व। बुद्धि का अर्थ होता है, विचार की क्षमता। और बुद्धत्व का अर्थ होता है, निर्विचार की क्षमता। बुद्धि का अर्थ होता है, ऐसा आकाश जो बादलों से घिरा है। बुद्धत्व का अर्थ होता है, ऐसा आकाश जो अब बादलों से नहीं घिरा है। बुद्धि ही जब परम शुद्ध हो जाती है तो बुद्धत्व बन जाती है। ऊर्जा वही है। बुद्धि ऐसी ऊर्जा है, जैसे सोना मिट्टी में पड़ा है-धूलि- धूसरित, कंकड़-पत्थर मिला। बुद्धत्व ऐसा सोना है जो आग से गुजर गया। कचरा-कूडा जल गया, परिशुद्ध हुआ| चौबीस कैरेट। सोना जब परिशुद्ध हो जाता है तो बुद्धत्व। और सोना जब कंकड़-पत्थर, मिट्टी-कचरे से मिला रहता है तो बुद्धि। बुद्धि को शुद्ध करते -करते ही बुद्धत्व का जन्म होता है। समझो इस सूत्र को बद्धिपर्यन्तसंसारे मायामात्र विवर्तते। बुद्धिपर्यन्त संसार है। बुद्धि ही ससार है। बुद्धिपर्यन्तसंसारे......। यह जो तुम्हारे भीतर विचारों का जाल है, ताना-बाना है यही संसार है। धीरे- धीरे विचारों को त्यागते जाओ, छोड़ते जाओ, क्षीण करते जाओ। तुम्हारे भीतर कभी-कभी ऐसे अंतराल आने लगेंगे जब क्षण भर को कोई विचार न होगा। एक विचार गया और दूसरा आया नहीं। थोड़ी देर को खाली
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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