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________________ के बिना आप देख न सकेंगे। लैला होती ही मजनूं की आंख में है। तो तुम जिस स्त्री के प्रेम में पड़ गये हो, तुमसे कोई पूछे क्यों पड़ गये? तो तुम कहते हो, सुंदर है। तुम कहते हो, उसकी वाणी मधुर है। तुम कहते हो, उसकी चाल में प्रसाद है। मगर ये सब बातें झूठ हैं। तुम प्रेम में पड़ गये हो इसलिए चाल में प्रसाद मालूम पड़ता, वाणी मधुर मालूम पड़ती, चेहरा सुंदर मालूम पड़ता। कल जब तुम्हारा सपना टूट जायेगा, यही चाल बेढब लगने लगेगी और यही वाणी कर्कश हो जायेगी और यही चेहरा अति साधारण हो जायेगा। यह एक सपना है जो तुमने प्रेम के कारण देखा। प्रेम अकारण है। अगर तुम अपने जीवन को भी समझने चलो तो तुम यही पाओगे कि यहां जो भी है, सब अकारण है। एक बार यह खयाल में आ जाये कि सब अकारण है तो जीवन से चिंता हट जाये। जहां कोई कारण नहीं वहां चिंता का कोई उपाय नहीं। 'और अनंत रूप से प्रकाशित स्फुरित प्रकृति को नहीं देखते हुए ज्ञानी को कहां बंध है और कहां मोक्ष है? कहां हर्ष, कहां विषाद?' स्फुरतोग्नन्तरूपेण प्रकृतिं च न पश्यत:। क्य बंध: क्य च वा मोक्ष: क्य हर्ष: क्य विषादिता।। और यह जो प्रकृति चारों तरफ स्फुरित हो रही है - स्फुरतोऽनन्तरूपेण यह जो अनंत- अनंत रूपों में चारों तरफ प्रकृति का खेल चल रहा है, लीला चल रही है और इस प्रकृति के पीछे परमात्मा का खेल चल रहा है, इस अनंत खेल को भी ज्ञानी देखता नहीं। ज्ञानी का इसमें बहुत रस नहीं है। वह इससे भी बड़े खेल में उतर गया। वह इस खेल के खेलनेवाले को देखने लगा। अब क्या देखना छोटी बातें! माना, वृक्ष बहुत सुंदर है और चांद भी बहुतसुंदर है और सूरज जब सुबह उगता है तो अपूर्व है। लेकिन भीतर के सूरज के मुकाबले कुछ भी नहीं है। कबीर ने कहा, जब भीतर का सूरज उगा तो जाना कि असली सूरज क्या है। हजार-हजार सूरज जैसे एक साथ उग गये। फिर भी बात पूरी नहीं होती, क्योंकि जो अंतर है वह परिमाण का नहीं है, मात्रा का नहीं है, गुण का है। भीतर एक प्रकाश है जो अपूर्व है। बाहर का तो प्रकाश सब एक न एक दिन बुझ जायेगा। यह सूरज भी बुझ जायेगा। ____ वैज्ञानिक कहते हैं, चार हजार साल के भीतर यह सूरज बुझ जायेगा क्योंकि इसकी ऊर्जा रोज चुकती जाती, इसका ईंधन कम होता जाता। तुम्हारे घर में जो तुम दीया जलाते हो सांझ वह ही सुबह नहीं बुझता, यह सूरज भी बुझेगा। इसका तेल भी चुक रहा है। माना कि इसकी रात बड़ी लंबी हैकरोड़ों-करोडों, अरबों वर्ष, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है? अनंत काल में अरबों वर्ष भी ऐसे ही हैं जैसे एक रात। सांझ तुमने दीया जलाया, सुबह तेल चुक गया दीया बुझ गया। भीतर एक ऐसा प्रकाश है जो कभी बुझता ही नहीं-बिन बाती बिन तेल। न तो वहां बाती है और न तेल है। ऐसा एक प्रकाश है। उस प्रकाश को जिसने देख लिया, फिर ये सब प्रकाश फीके मालूम होंगे।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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