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________________ है। मखली गोशाल को कैसे मुक्त करो? मखली गोशाल के आसपास कारागृह बना ही नहीं । मखली गोशाल खो गया । ऐसे ही अजित केशकंबली खो गया। ऐसे ही और न मालूम कितने सदगुरु जिन्होंने जाना, उनके आसपास परंपरा नहीं बनी तो खो गये। अब यह मजे की बात है, जिनके पास परंपरा बनी वे परंपरा में दब गये और जिनके पास परंपरा नहीं बनी वे तो बिलकुल खो गये। तो धन्यभागी हैं वे, जिनके आसपास परंपरा बनी। कुछ तो बचे! कितनी ही पर्तों में दबे हों लेकिन हैं तो ! कोई न कोई उन पर्तों को तोड़ सकेगा। तो परंपरा एकदम व्यर्थ नहीं है। बचाती है, मारती भी है। परंपरा का उपयोग आना चाहिए तो फिर बचाती है। ठीक मौसम में फिर मुक्त कर देती है। जैसे मुझे लगता है, अष्टावक्र के लिए ठीक मौसम आया। ऋतु आ गई है, बादल घिर गये हैं। इस पृथ्वी पर अब अष्टावक्र को समझने के लिए ज्यादा संभावना है जितनी पहले रही होगी । मनुष्य की प्रतिभा विकसित हुई है। मनुष्य का बोध बढ़ा है। मनुष्य प्रौढ़ हुआ है। इतनी जो अड़चनें दुनिया में दिखाई पड़ती हैं ये प्रौढ़ता के कारण ही दिखाई पड़ती हैं। अब इस प्रौढ़ता के भी ऊपर जाना है। इस प्रौढ़ता से भी पार होना है। अष्टावक्र की बातें उपयोगी हो सकती हैं। परंपरा से छुड़ा लेना होगा | अब यह तो स्वाभाविक है कि अष्टावक्र जैसे व्यक्ति के पीछे जो परंपरा बनेगी वह शुद्ध नहीं रह सकती, क्योंकि शुद्ध रहने के लिए तो अष्टावक्र जैसे लोग चाहिए। ऐसे लोग तो विरले होते हैं, कभी-कभी होते हैं। इनकी कोई धारा तो नहीं होती। बार-बार श्रृंखला टूट जाती है। अष्टावक्र को बचाने के लिए तो बुद्ध, महावीर, कृष्ण जैसे व्यक्ति चाहिए। मगर ये तो कभी-कभी होते हैं। और जब ऐसे व्यक्ति होते हैं तो फिर वही बात खड़ी होती है। उनको भी कोई व्यक्ति नहीं मिलता जो ठीक उनकी ही दशा का हो, उनकी ही स्थिति का हो। फिर बात नीचे हाथों में पड़ जाती है। पड़ेगी ही । जैसे जल बादल से बरसता है, भूमि पर गिरता है, कीचड़ मच जाती। जब तक भूमि को नहीं छुआ तब तक जल –कण बड़े स्वच्छ होते हैं, स्फटिक मणि जैसे होते हैं। जैसे ही भूमि को छुआ, कीचड़ मच जाती है। अष्टावक्र बरसेंगे, तुम्हारे मन को छुएंगे, कीचड़ मच जायेगी। मगर सौभाग्य है कि कम से कम कीचड़ तो मचती है। मिट्टी में भी गंदा तो हो जाता है पानी लेकिन मौजूद तो होता । कोई पारखी कभी पैदा होगा तो मिट्टी को अलग कर लेगा, पानी को अलग कर लेगा । परंपरा की जरूरत है। संघर्ष चलने दो। परंपरा - क्रांति में संघर्ष चलने दो। संघर्ष की भी जरूरत है, बार-बार क्रांति हो इसकी जरूरत है। ताकि बार - बार जो नष्ट हो गया, जो खो गया, पुनः आविष्कृत हो सकै। और बार-बार परंपरा बने यह भी जरूरी है ताकि जो नया पुनः आविष्कृत हुआ है वह बचाया जा सके। होगी बार-बार क्रांति । होगी बार-बार परंपरा । तुम इस बात को ठीक से समझ लेना। पूछा है तुमने कि आप क्रांतिकारी हैं। लेकिन मैं साधारण क्रांतिकारी नहीं हूं। मैं परंपरा के विरोध में हूं ऐसा क्रांतिकारी नहीं हूं। मैं
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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