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________________ मुझे पकड़ना, फिर महावत का मुझे छुड़ा देना, सब असत्य है। बर्कले को यह पता नहीं था, क्योंकि वहा नयी-नयी बात वह कह रहा था, भारत में तो बहुत पुराने दिन से लोग कह रहे हैं। लेकिन जो असत्य कहा जाता है, माया कही जाती है, वह भी है तो। किसी तरह है, सपने ही सही, सपने जैसे ही सही, मगर सपना भी तो है। तो इस सपने को कहते हैं-व्यावहारिक सत्य। आभास होता है, वस्तुत: नहीं है। और परमात्मा को कहते हैं, आभास भी नहीं होता उसका और वस्तुत: जब कोई समाधि में जागेगा तब परमात्मा को जानेगा और संसार खो जाएगा। जैसे रोज तो होता है-रोज रात तुम सोते हो, ये पहाड़-पत्थर, वृक्ष, पशु -पक्षी, पति, पत्नी, बेटे, सब खो जाते हैं। इनका कोई अस्तित्व नहीं रह जाता। और सपने में नये बेटे और नयी पत्नियां और नये मकान और नये काम शुरू हो जाते हैं। उनका अस्तित्व हो जाता है। सुबह जागकर फिर उनका अस्तित्व खो जाता है। फिर पुरानी पत्नी, मकान, द्वार-दरवाजा, -सब आ जाता है। ध्यानी कहते हैं कि ऐसा ही एक जागरण समाधि में घटित होता है जब सब विचार शांत हो जाते हैं-परम जागरण। उस जागरण में यह जगत जो अभी दिखायी पड़ रहा है, असत्य मालूम होने लगता है-आभास मात्र, प्रतीति मात्र, स्वप्नवत। और परमात्मा सत्य मालूम होने लगता है, जिसका कि पहले आभास भी नहीं होता था। लेकिन जनक की बात इससे भी ऊपर जाती है। वह कहते हैं, क्या व्यवहार और क्या परमार्थ! न संसार बचा है, न मोक्ष बचा है। असत्य तो गया ही गया, उसके साथ-साथ सत्य भी जा चुका है। सत्य और असत्य एक ही तराजू के दो पलड़े थे। वे भिन्न-भिन्न नहीं थे। जब झूठ ही गया तो सच कैसे बचेगा? इसे कभी तुमने सोचा? रावण को हटा दो, तो रामायण खराब हो जाएगी, बच नहीं सकती। अकेले राम से नहीं चलेगी। कि तुम चला लोगे? रावण को काट दो बिलकुल रामायण से, फिर बनाओ रामायण! या कभी रामलीला करो, रावण को हटा दो, बस बिना ही रावण के चलने दो रामलीला, तुम पाओगे, चलती ही नहीं। थोड़े राम उछलेंगे -कूदेंगे, करेंगे क्या? इधर-उधर जाएंगे, करेंगे क्या? रावण के बिना नहीं चलती है। और राम को हटा लो तो रावण भी व्यर्थ हो जाता है। साथ-साथ उनकी सार्थकता है। शुभ और अशुभ साथ-साथ जुड़े हैं। सच और झूठ साथ -साथ जुड़े हैं। सुंदर- असुंदर साथ-साथ जुड़े हैं। एक ही साथ उनकी सार्थकता है। लाओत्सु ने कहा है, जब तक दुनिया में साधु हैं तब तक असाधु भी रहेंगे। बात ठीक कही है। जिस दिन असाधु मिटेंगे, उस दिन साधुओं को भी मिट जाना होगा। होनी चाहिए एक ऐसी दुनिया जहां न साधु हों न असाधु हों वहां जीवन सरल होगा। वहा जीवन परम निसर्ग को उपलब्ध होगा। वहां जीवन में तथाता होगी, ऋत होगा। न कोई साधु न कोई असाधु। न कोई राम, न कोई रावण। इसको खयाल करो। तुम्हारे साधु असाधुओं को मिटाने में लगे रहते हैं कि जो भी असाधु आए उसको साधु बनाओ। पर उनको पता नहीं कि असाधु अगर मिट जाएं तो साधु भी न बचेंगे| वह आत्महत्या
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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