SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हमें पक्का पता भी नहीं है कि नदी कहां जा रही है। हमें पक्का पता भी नहीं कि इसका अंत कहां होगा। अंत होगा भी या नहीं, यह भी पता नहीं। इस विराट की नियति क्या है इसका भी हमें कोई पता नहीं। यह सब बड़ा रहस्यपूर्ण है। लेकिन इसका पता लगाने की चेष्टा व्यर्थ है। हम पता लगा भी न पायेंगे। यह तो ऐसे ही समझो कि बूंद सागर को समझने चली। यह नहीं हो पायेगा। यह असंभव है। बूंद सागर तो बन सकती है लेकिन सागर को समझ नहीं सकती। मनुष्य परमात्मा बन सकता है लेकिन परमात्मा को समझ नहीं सकता। बूंद अगर सागर में गिर जाये और राजी हो जाये और छोड़ दे अपनी सीमा तो सागर हो जाये। सागर होकर ही जान पायेगी, और कोई उपाय नहीं। हम उसी को जान सकते हैं जो हम हो जाते हैं। प्रपंच से बाहर होने का अर्थ है, जो स्फ्रणा से हो वही करना, महत्वाकांक्षा से मत करना। कुछ पाने, कुछ होने की आकांक्षा से मत करना। जो परमात्मा बनाये, जैसा रखे -सुख में तो सुख में, दुख में तो दुख में। अगर ऐसा तुम कर सके तो तुम्हारे जीवन में कभी पश्चात्ताप न होगा। अगर ऐसा न कर सके तो प्रपंच का फल पश्चात्ताप है। एक दिन तुम बहुत रोओगे और तब कुछ भी न कर सकोगे। क्योंकि जो समय बीत गया, बीत गया। रंगों के मनहर मेले, चले गये छोड़ अकेले एक दिन बहुत रोओगे| एक दिन बहुत पछताओगे| एक दिन आंखों में सिर्फ टूटे इंद्रधनुष, बिखरे सपने, आंसुओ के अतिरिक्त कुछ भी न रह जायेगा। रंगों के मनहर मेले, चले गये छोड़ अकेले टूटे अनुबंधों जैसे, रूठे संबंधों जैसे बिखर रहे पल- अणुपल हम, फूटे तट-बंधों जैसे झरे -गिरे पीत पात से, भरे - भरे गीत गात से पीड़ाओं में घुले -मिले, आंसू से जी भर खेले शापित वरदान सरीखे, बूझकर भी जलते दीखे अर्थहीन जीवन जीना, जग आकर हमसे सीखे अपनों के तेवर बदले, सपनों के जेवर बदले प्रज्वलित पलाश से नयन, जैसे गेरू के ढेले सासें घनसार हो गईं, आशायें क्षार हो गईं अधरों पर चिपकी बेबस मुसकानें भार हो गईं रोम-रोम जलती होली, भाल लगी उलझन रोली एक भाव से तटस्थ हो, फाग आग दोनों झेले रंगों के मनहर मेले, चले गये छोड़ अकेले एक दिन बहुत पछताओगे| यह जो आज मेला जैसा मालूम पड़ता है, यह जो रंगों का जमघट है, यह ज्यादा देर न टिकेगा। यह सपना है। यह तुमने ही मान रखा है। यह कहीं है नहीं। जल्दी ही
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy