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________________ CI परिपाटी दोहराती माटी बीज बनाती प्रभु का पर पा जाती। तुम कब तक दोहराते रहोगे यह जड़ यंत्रवत जीवन? कुछ बनाओ, कुछ सृजन करो। और एक ही चीज सबसे पहले सृजन करने की है और वह है स्वयं के सृजन की। और वहां सृजन जैसा भी क्या है, पर्दा हटाना। आत्म-सृजन का अर्थ इतना ही होता है-आत्म-आविष्कार। अपने को उघाड़ लेना है। और तुम थोड़े भीतर चलो तो तुम अचानक पाओगे कि परमात्मा हजार-हजार कदमों से तुम्हारी तरफ चल पड़ा। तुम एक कदम उठाओ, वह हजार कदम उठाता है। तुम्हें थोड़े उसे खोजना है। वह भी तुम्हें खोज रहा है। मेरा तो जीवन मरूथल है जब तुम आओ तो सावन है ऐसा रूठा मधुमास कि फिर आने का नाम नहीं लेता ऐसा भटका है प्यासा मन क्षण भर विश्राम नहीं लेता मेरा तो लक्ष्य अदेखा है। तुम साथ चलो तो दर्शन हो अब तुम न तुम्हारी आहट कुछ शकुनों की घड़ियां बीत चलीं त्यौहार प्रणय का सूना है फुलझड़ियां हैं सब रीत चली मेरा तो यज्ञ अधूरा है तुम साथ रहो तो पूजन हो उलझी अलकें भीगी पलकें हो बैठा है परिचय मेरा शंका से देख रहा है जग क्षण - क्षण जीवन अभिनय
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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