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________________ लू यह कह रहे हैं कि पंछी इतना काम कर रहे हैं फिर भी खुद नहीं कर रहे हैं, जो हो रहा है, हो रहा है। इसमें योजना नहीं है। इसमें अहंकार नहीं है। इसमें कर्तृत्व का भाव नहीं है। लोग तो अपने ही ढंग से समझते हैं। लोग अपनी बुद्धि से समझते हैं। लोगों ने समझा कि यह तो आलस्य का पाठ है तो ओढ़कर चांदर सो रहो। लेकिन तुम अगर चांदर भी ओढ़कर सोये तो तुम्हीं कर्ता हो । परमात्मा को करने दो, तुम मत करो, यह अर्थ होता है अलक्ष्यस्फुरण। अज्ञात स्फुरण। जो हाथ दिखाई नहीं पड़ते उनमें अपने को छोड़ दो। जिसने सब सम्हाला है, तुम्हें भी सम्हाल लेगा। छोटी-सी जिंदगी है तुम्हारी। एक दिन मरे, दूसरे दिन गये। दो दिन की जिंदगी है। इतना विराट सम्हला हुआ है, तुम अपनी इस दो दिन की जिंदगी को छोड़ नहीं सकते इस विराट पर ? और न छोड़कर भी क्या सार है! मरोगे। न तुमने जन्म लिया है स्वयं, न मौत तुम ले सकोगे। जन्म भी हुआ, मौत भी घटेगी, बीच में ये थोड़े से दिन हैं, तुम नाहक उत्पात कर रहे। अष्टावक्र कहते हैं, छोड़ दो स्फुरण पर। जीयो सहज स्फुरण से मत करो योजना । मत बनाओ बड़े किले। मत खड़े करो बड़े स्वप्न । लेकिन लोग समझते हैं कि यह आलस्य की शिक्षा है। यह आलस्य की शिक्षा नहीं है। यह अकर्मण्यता की शिक्षा नहीं है। यह इतनी ही शिक्षा कि कर्ता तुम न रहो, कर्ता परमात्मा हो। लेकिन लोग अपने ही ढंग से समझते हैं। मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन एक स्त्री के प्रेम में था। वह स्त्री जरा चिंतित थी, संदिग्ध थी। एक दिन उसने पूछा—जब शादी बिलकुल करीब ही आने लगी और दिन बहुत निकट आने लगा तो उस स्त्री ने पूछा कि नसरुद्दीन, क्या तुम शादी के बाद भी मुझे इतना ही प्यार करोगे? ऐसा ही प्रेम करोगे जैसा अभी करते हो? नसरुद्दीन ने कहा, क्यों नहीं! तुम तो जानती ही हो कि मुझे शादीशुदा औरतें ज्यादा पसंद हैं। आदमी की समझ ! अपनी समझ से ही देखेगा। अपनी ही समझ से व्याख्या करेगा। अपनी समझ के बाहर हम नहीं निकल पाते। इसलिए परमात्मा की समझ हमारे हाथों में नहीं उतर पाती। हम थोड़ी अपनी समझ को एक तरफ रखें। लक्ष्यस्फुरणा का अर्थ होता है, तुम स्वभाव पर छोड़कर देखो, क्षण-क्षण जीयो । जो अष्टावक्र अलक्ष्यस्फुरणा से कह रहे हैं वही बुद्ध ने कहा है क्षणवाद से। क्षण- क्षण जीयो । आगे के क्षण का विचार मत करो। इस क्षण जो हो, होने दो। आगे का क्षण जब आयेगा तब आयेगा। जीसस ने कहा है, आगे का क्षण अपनी फिक्र स्वयं कर लेगा। जीसस ने कहा है, देखो खेतों में उगे हुए लिली के फूल। कितने सुंदर हैं! न इन्हें कल की चिंता है, न बीते कल की कोई याद । न ये श्रम करते हैं, न ये रंग जुटाते, न सुगंध जुटाते सब किसी अलक्ष्यस्फुरणा से हो रहा है। और जीसस ने कहा है शिष्यों से कि मैं तुमसे कहता हूं कि सम्राट सोलोमन भी अपने बहुमूल्य वस्त्रों में इतना सुंदर न था जितने कि ये लिली के फूल । अलक्ष्यस्फुरणा का अर्थ है, जैसे फूल हैं, पक्षी हैं, यह सारी प्रकृति का विराट खेल चल रहा
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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