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________________ यह देखकर कि अब तू उनकी कामवासना में बहुत सहयोगी नहीं है अत्यंत क्रोध आने लगेगा। तू सोच ले। संन्यास तुम सोचते हो तुमने लिया। लेकिन तुम जुड़े हो बहुत लोगों से, उन सब को बदलाहट करनी पड़ेगी। उस बदलाहट में उनको परेशानी होगी-संन्यास तो तुमने लिया और बदलाहट उनको करना पड़े! यह झंझट! अगर इतनी हिम्मत उनमें होती तो वे ही संन्यास न ले लेते? बदलने की ही तो हिम्मत नहीं है लोगों में, नहीं तो खुद ही संन्यास ले लेते। तुम्हारे लिए क्यों बैठे रहते कि तुम संन्यास लो! वे तुमसे पहले ले लेते। बदलना नहीं चाहते। बदलने में अड़चन है। आदमी ने एक ढांचा बना लिया होता है, उस ढांचे में गाड़ी चलती है, एक लीक होती है, चलता रहता है-लकीर का फकीर। सब व्यवस्थित हो गया, एक तरह की चैन मालूम होती है। तुम चकित होओगे यह जानकर कि आदमी अपने दुखों से भी धीरे - धीरे समझौता कर लेता है। उनको भी बदलना नहीं चाहता। उनको बदलने से भी झंझट आती है। क्योंकि जब भी बदलाहट करो तो फिर से सब जीवन की संरचना करनी होती है। इतनी हिम्मत बहुत कम लोगों में होती है। अब कौन फिर से अ, ब, स से शुरू करे! इसीलिए तो जैसे -जैसे उम्र बढ़ती जाती है, लोगों की सीखने की क्षमता कम होती जाती है। छोटे बच्चे बड़ी जल्दी सीखते हैं। अभी उन्होंने कुछ व्यवस्था जमायी नहीं है, सीखने में कुछ हर्जा छोटे बच्चे किसी भी नयी भाषा को जल्दी सीख लेते हैं। लेकिन जैसे तमने एक भाषा सीख ली, फिर दूसरी भाषा सीखना बहुत मुश्किल हो जाता है। क्योंकि वह पहली सीखी हुई भाषा बीच-बीच में बाधा डालती है। जब तुमने एक काम सीख लिया तो फिर दूसरा काम सीखने की हिम्मत नहीं रह जाती। फिर ऐसा लगता है कि पता नहीं दूसरे काम में सफल हुए, न हुए। तो तुमने संन्यास लिया, तुम्हारे भीतर शांति आयी, बाहर उथल-पुथल हो रही है, यह बिलकुल स्वाभाविक है। लेकिन इसमें तुम चिंतित मत होओ। यह उनकी समस्या है। यह तुम्हारी समस्या नहीं है। अब अगर तुम यह सोचो कि तुम तभी संन्यास लोगे जब किसी के जीवन में तुम्हारे कारण कोई उथल-पुथल न आएगी, तो तुम कभी संन्यास न लोगे। तब तो तुम कभी बदल ही न सकोगे। तब तो तुम ऐसे ही सड़ते रहोगे। यह उनकी समस्या है, इसमें तुम चिंता न लो। तुम तो देखकर और चकित होओ, हैरान होओ कि आश्चर्य, संन्यास मैंने लिया है, परेशान दूसरे लोग हो रहे हैं। उनके भी तुमने तार झनझना दिये। फिर और भी कारण हैं। समझौता ही नहीं टूटता, समस्या नयी व्यवस्था के कारण ही नहीं आती, तुम्हारे संन्यास के कारण चोट भी लगती है। उनके अहंकार को भी चोट लगती है कि अरे, हम पीछे रह गये, तुम आगे निकल गये! यह तुमने हिम्मत कैसे की? तुमने अपने-आपको समझा क्या है? वे सिद्ध करना चाहते हैं कि तुम अज्ञानी हो, पागल हो इसलिए नहीं कि तुम पागल हो, बल्कि इसलिए कि इसी तरह वे अपने को बचा सकते हैं। यह सुरक्षा का उपाय है। सिद्ध अगर हो जाए कि तुम पागल हो गये, तो
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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