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________________ भूल हुई है क्या दुख हुआ, आप बताएं। मैंने कहा, दुख यह हुआ कि आपने इनको इतना इंतजाम कर दिया, इतना सुंदर बिस्तर दे दिया कि यह बिचारे रात अधिा रात तक तो करवट बदलते रहे, अगर मैं न पूछता तो शायद यह रात भर ऐसे ही पड़े रहते। इनको ऐसा भी लगा कि नीचे सोऊ तो अशोभन मालूम होगा। लोग सोचेंगे, कैसा अशिष्ट, इसको सोना भी नहीं आता। और उन्होंने किया जैसे ही सुबह मैं उठा, उन्होंने जल्दी से उठकर, वापिस बिस्तर पर बैठ गये वे। मैंने कहा, कपों? उन्होंने कहा, ऐसे कोई देख ले और कहे कि नीचे सोए! तो क्या समझेंगे कि इस आदमी को बिस्तर पर सोने की भी तमीज नहीं। लेकिन उन्होंने कहा, मैं भी क्या करूं, जमीन पर ही सोने की आदत है। तो जो किसी को सुख हो, किसी को दुख हो सकता है। सापेक्ष। जो ठंडा, वह किसी को गरम लग सकता है। जो किसी को सुंदर लगता है वह किसी को असुंदर लग सकता है। जो तुम्हें आज सुंदर लगता है, कल असुंदर लग सकता है। रोज तो तुम्हें यह अनुभव होता है। एक स्त्री के प्रेम में पड़ गये, वह बिलकुल सुंदर लगती थी, देवी लगती थी। आज प्रेम समाप्त हो गया, वह नशा उतर गया, वह खुमारी चली गयी, अब वह कुरूप लगती है, बेढब लगती है। आज तुम्हें भरोसा नहीं आता कि कभी इस स्त्री में मैंने सौंदर्य कैसे देख लिया था! सापेक्ष। नियति निरपेक्ष है लेकिन जो सत्य है, वह निरपेक्ष है। जितना सापेक्ष है, वह सत्य नहीं। जहां तक सापेक्ष है, वहां तक सत्य नहीं, वहा तक मनुष्य के मत हैं, सत्य नहीं। मान्यताएं, धारणाएं। भ्रम है विरोधाभास और जहां -जहां तुम्हें विरोध दिखायी पड़ता है, जानना वहां-वहां भ्रम है। क्योंकि यहां सब विरोध जुड़े हैं, अलग नहीं हैं। तुम्हें लगता है कि सुख और दुख विरोधी। गलती बात है। दोनों जुड़े हैं। पार्टनर हैं, साझेदार हैं। एक ही उनकी दुकान है। जरा भी अलग नहीं हैं। एक मर जाए, दूसरा मर जाता है। जीवन-मृत्यू, तुम्हें लगते हैं विरोधाभास, विरोधी नहीं। मृत्यु के कारण जीवन है, जीवन के कारण मृत्यु है, दोनों जुड़े हैं। भ्रम है विरोधाभास नियति निरपेक्ष है तम -विभा द्वय से और अंधेरे और प्रकाश के द्वंद्व से मुक्त है महाकाश वह जो सिद्ध का महाकाश है, वह द्वंद्व से मुक्त है। स्वस्वरूपेठहमद्वये-वहां कोई दो नहीं है। जो दे व्यर्थ को अर्थ वही सिद्ध वही समर्थ तुम तो अभी अर्थ को भी -व्यर्थ किये दे रहे हो। अर्थ का भी अनर्थ किये दे रहे हो। इतना
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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