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________________ में जो बाती पड़ी है, बाती पर जो ज्योति जल रही है, वही ज्योति तुम हो। माना कि दीये और तेल के बिना ज्योति तिरोहित हो जाती है, लेकिन दीया और तेल ही ज्योति नहीं है। ज्योति प्रगट होने के लिए दीये और तेल की जरूरत होती है। तुम्हारे प्रगट होने के लिए शरीर और मन की जरूरत होती है। ये आवश्यक हैं तुम्हारी अभिव्यक्ति के लिए, तुम्हारे अस्तित्व के लिए आवश्यक नहीं हैं। तुम्हारा अस्तित्व इनसे पार है। उस पार का तुम्हें बोध होने लगे, तो मृत्यु से कोई भय न रह जाएगा। तब तुम जानोगे, मृत्यु होती ही नहीं। शरीर के तल पर मृत्यु सुनिश्चित है, आत्मा के तल पर मृत्यु न कभी हुई है, न हो सकती है। इतना ही तुम पहचान लो कि तुम आत्मा हो। तिफ्ली देखी शबाब देखा हमने हस्ती को हवा बेआब देखा हमने जब आंख हुई बंद तो उकदा यह खुला जो कुछ भी देखा सो ख्वाब देखा हमने अभी तुम जिसे जिंदगी समझ रहे हो वह सपने से ज्यादा नहीं। जब आंख हुई बंद तो उकदा यह खुला मरते वक्त तुम जानोगे, जब आंख सच में बंद होगी तब यह राज खुलेगाजो कुछ भी देखा सो ख्वाब देखा हमने जिंदगी जिसको समझते थे, वह सपना सिद्ध हुई और इस जिंदगी के भीतर जो सत्य छिपा था, सपने में इतने उलझे रहे कि सत्य को कभी देखा नहीं। कुछ पद और नसीहत ने भी तामीर न की दुनिया के किसी काम में ताखीर न की दिन रात यहीं के साज और सामी में रहे जाना है कहां कुछ इसकी तदबीर न की फिर भटकोगे। मौत से मत घबड़ाओ, अगर तुम्हारे जीवन में सच में ही समझने की कोई आकांक्षा है तो इतनी बात समझ लो कि यह जिसे तुम जिंदगी समझ रहे हो दिन रात यहीं के साज और सामी में रहे यह भ्रांति है, मौत इसी को छीन लेगी। धन छीन लेगी, पद छीन लेगी, नाम छीन लेगी, यश छीन लेगी। अगर तुमने नाम, पद, यश, धन को ही समझा कि मेरा होना है, तो तुम मरे, तो घबड़ाना तुम्हारा स्वाभाविक है। इसके पार भी तुम हो। पद के पार, प्रतिष्ठा के पार, नाम-यश के पार, धन-दौलत के पार तुम्हारा कुछ होना है। उसे थोडा पहचान लो, उसका थोड़ा अनुभव कर लो, मौत उसे नष्ट न कर पाएगी। जिसने स्वयं को जाना, मौत उसके सामने हार जाती है। और मौत जल्दी आ रही है। तुम कह रहे हो, इससे बचने का कोई उपाय है? मैं तो सारी चेष्टा यह कर रहा हूं कि तुम्हें समझ में आ
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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