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________________ गत आगत की सतह पर हो चुका है पहले ही काम। मर गये तुम उसी दिन जिस दिन तुम जन्मे। जिस दिन तुमने सांस ली, उसी दिन सास छूटने का उपाय हो गया। अब सांस किसी भी दिन छूटेगी। तुम सदा न रह सकोगे। इसलिए इस भय को समझने की कोशिश करो, बचने की आशा मत करो। बचने को तो कोई नहीं बच पाया। कितने लोगों ने कितने उपाय किये बचने के। नादिरशाह इतना बड़ा लड़ाका था, खूंख्वार, हजारों लोगों की हत्याएं कीं, मगर खुद की मौत से डरता था। भारी ड़र था उसे। दूसरे की मौत तो कोई बात ही न थी। कहते हैं, एक रात एक वेश्या उसके शिविर में नाच करने आयी और जब लौटने लगी तो रात देर हो गयी, दो बज गये और वह ड़रने लगी। उसने कहा, रास्ते में अंधेरा है और मेरा गांव दूर है, मैं कैसे जाऊं? तो नादिरशाह ने कहा कि तू फिक्र मत कर, तू कोई साधारण व्यक्ति के दरबार में नाचने आई है? उसने अपने सैनिकों को कहा कि रास्ते में जितने गांव हैं, सब में आग लगा दो, ताकि यह वेश्या अपने गांव तक रोशनी में जा सके। पांच-सात गांवों में आग लगवा दी, गावों के सोते लोग जल गये। लेकिन रास्ते पर रोशनी करवा दी। दूसरे की मौत तो जैसे खिलवाड़ थी, लेकिन खुद की मौत की बडी घबड़ाहट थी। इतना घबड़ाया रहता था मौत से कि रात भी ठीक से सो नहीं सकता था । और इसी घबड़ाहट में मौत हुई। जब हिंदुस्तान से वापिस लौट रहा था और एक रात एक शिविर में तंबू के भीतर सोया था, तो रात में एक डाकू घुस गया अंदर। वह किसी की जान लेने को उत्सुक न था, वह तो कुछ सामान चुराने को उत्सुक था। लेकिन उसकी मौजूदगी और घबड़ाहट में घोड़े हिनहिनाने लगे और सैनिक भागने लगे। कुछ घबड़ाहट ऐसी फैल गयी अंधेरी रात में कि लोग समझे कि बहुत दुश्मन हैं, कि नादिरशाह घबड़ाकर बाहर भागा। तंबू की रस्सी से पैर फंस गया, तो वह समझा कि किसी ने पैर पकड़ लिया। और उसी घबड़ाहट में उसकी हृदय की धड़कन बंद हो गयी, वह गिर पड़ा। कोई ने पकड़ा नहीं, किसी मारा नहीं, किसी कुछ किया नहीं, सिर्फ पैर फंस गया तंबू की रस्सी में, वह समझा कि गये जान से ! उसी घबड़ाहट में मरा। आदमी बचने के कितने उपाय करे ! मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि दूसरों को मारने की उत्सुकता उन्हीं लोगों में होती है, जो अपने को बचाने के लिए बडे आतुर होते हैं। जिनको यह खयाल होता है कि हम जिंदगी तो नहीं बना सकते, लेकिन कम-से-कम लोगों को मार तो सकते हैं। मृत्यु तो कर सकते हैं दूसरों की। दूसरों को मारने से ऐसा लगता है कि हम शायद मृत्यु के मालिक हो गये। देखो, कितने लोग मार डाले। मृत्यु हमारे कब्जे में है। इससे एक भ्रांति पैदा होती है कि शायद मृत्यु हमें क्षमा कर देगी। नहीं, न धन से जाती है, न पद से जाती है, न शक्ति से जाती है, कोई उपाय मृत्यु से बचने का नहीं है। तुम पूछते हो, मृत्यु का बड़ा भय है, क्या इससे छूटने का कोई उपाय है? छूटने का उपाय करते रहोगे, भय बढ़ता जाएगा। तुम छूटने का उपाय करोगे, मौत रोज करीब
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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