SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसलिए परिभाषा मत मांगो, सिद्धात - शास्त्र मत मांगो ! जिसके पास शब्द हैं जितने उतना उससे अर्थ दूर है शब्दों का बहुत समूह संग्रह मत कर लो। उससे पांडित्य तो बनेगा, प्रतिभा न जगेगी। पट घूंघट का नहीं, रूप तो आत्मा का जलता कपूर है दुनिया क्या है एक वहम है शबनम में मोती होने का यही तो मैं तुमसे कह रहा इतनी देर से कि जहां-जहां तुमने अभी प्रेम देखा है, वहा शबनम में मोती देख लिया है। खोज तो परमात्मा की ही चल रही है। खोज तो मोती की ही चल रही है। लेकिन सुबह की धूप में कभी देखा ? घास पर फैली हुई ओस की बूंदें मोतियों जैसी मालूम पड़ती हैं। सुबह की धूप में मोतियों को भी झेंपा दें मोतियों को भी शर्मा दें। दूर से ही लेकिन पास गये तो ओस की बूंद ओस की बूंद है, मोती नहीं है। दुनिया क्या है एक वहम है शबनम में मोती होने का और जिंदगानी है जैसे पीतल पर पानी सोने का जिंदगी को थोड़ा गौर से देखो। तो यह ऊपर-ऊपर जो पीतल के ऊपर चढ़ा हुआ सोने का पानी है, यह उतर जाए। जरा पास आओ। जिंदगी को जरा होश से देखो, तो जो बूंदें शबनम की हैं, वे मोती न मालूम हों। तो तुम्हारी खोज धीरे- धीरे सब तरफ से परमात्मा की तरफ जाने लगेगी। उसकी ही खोज है जो शाश्वत है। उसकी ही खोज है जो सनातन है। उसकी ही खोज है जो अमृत है। तो परमात्मा क्या है? परमात्मा अमृत की प्यास है। परमात्मा क्या है? परमात्मा तुम्हारे भीतर सनातन की खोज है। शाश्वत की खोज है। परमात्मा की प्रतिमा क्या है? यह जो गवेषणा में आतुर, जिज्ञासा और मुमुक्षा से भरा हुआ खोजी है इसी में परमात्मा की प्रतिमा है। कहीं और नहीं, पत्थरों में नहीं, मंदिर की मूर्तियों में नहीं। इस पुजारी में, जो परमात्मा की पूजा में लगा है। खोज रहा है जगह-जगह, अर्चना अपनी चढ़ा रहा है। हर जगह से जिसकी चेष्टा चल रही है कि परमात्मा को पहचान लूं। इसमें ही उसकी प्रतिमा है। कबीर ने कहा है, भक्त में भगवान है। महवीर ने कहा है, अप्पा सो परमप्पा । वह जो आत्मा है, उसी में परमात्मा है। परमात्मा कोई वस्तु नहीं है जिसे तुम किसी दिन देख लोगे। तुम्हारे ही भीतर जिस दिन प्रेम की ऐसी घटा उठेगी कि बेशर्त तुम इस सारे अस्तित्व को प्रेम कर पाओगे, इस अस्तित्व से तुम्हारे चित्त का कोई विरोध, कोई संघर्ष न रह जाएगा, इस अस्तित्व से जिस दिन तुम्हारा सहयोग परिपूर्णता
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy