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________________ प्रेम है मन की बात, मन अथिर है। शरीर कम से कम थोड़ा थिर है, टिकता है-सत्तर साल तो टिकता है! थोड़े -बहुत फर्क होते रहते हैं, लेकिन ऐसे टिकता है। मन तो घड़ी भर में बदल जाता है। अभी जिस स्त्री के लिए जान देने को तैयार थे, क्षण भर बाद बात खतम हो गयी। इसलिए पश्चिम में विवाह अस्तव्यस्त हो गया, परिवार डांवाडोल हो गया। लोगों ने प्रेम को मूल्य दिया है। लोग कहते हैं, प्रेम होगा तो साथ। पूरब में लोग कहते हैं, अपनी पत्नी के सिवाय किसी स्त्री से कोई संबंध बनाया, तो पाप। पश्चिम में लोग कहने लगे हैं, जिससे प्रेम नहीं उसके साथ कोई संबंध बनाया तो पाप-फिर चाहे वह तुम्हारी पत्नी ही क्यों न हो। अगर उससे प्रेम नहीं है तो उसके साथ सोना पाप है। और जिससे प्रेम है, वह चाहे तुम्हारी पत्नी न भी हो, उसके साथ सोना पुण्य है। यह बड़ी दूसरी नीति है। पूरब की नीति शरीर के तल पर खड़ी है, पश्चिम की नीति मन के तल पर, लेकिन पूरब की नीति ज्यादा चिरस्थायी है। वह जो पहला आदमी था, जिसने कचरे से भर लिया था महल को, उसका कचरा बहुत चिरस्थायी है। दूसरे ने फूल से भरा था, वे बड़े क्षणभंगुर हैं। असल में जितनी सुंदर चीज हो, उतनी जल्दी कुम्हला जाती है। पत्थर तो वहीं पड़े रहेंगे, फूल सुबह खिले सांझ गिर जाएंगे। विवाह पत्थर जैसा है। प्रेम -विवाह फूल जैसा है। लेकिन खतरा भी है, थिर नहीं हो पाएगा। इसलिए पश्चिम की पूरी व्यवस्था डांवाडोल हो गयी है। पूरब थिर है। सदियां बीत गयीं, मनु महाराज से लेकर अब तक सब थिरता है। पश्चिम में कुछ भी थिर नहीं है, सब डांवाडोल है। जितने लोग विवाह करते हैं, उनमें से आधे लोग तीन साल के भीतर तलाक दे देंगे। अब ऐसा आदमी तो खोजना ही मुश्किल है जो एक ही पत्नी के साथ टिक रहा है। पत्नियां न मालूम कितने पतियों के पास गयी हैं, पति न मालूम कितनी पत्नियों के पास गये हैं, बच्चों की भीड़ बढ़ती जाती है, तय भी करना मुश्किल हो जाता है, कौन किसका बच्चा मैंने सना. एक पत्नी अपने पति से कह रही थी कि देखो । रुकावट डालो. तम्हारे बच्चे और मेरे बच्चे मिलकर हमारे बच्चों को पीट रहे हैं। कुछ बच्चे पति के हैं जो वह दूसरी पत्नियों से लाया है। कुछ पत्नी के हैं जो वह किन्हीं दूसरे पतियों से लायी है। कुछ इन दोनों के बीच में। तो वह कह रही है, तुम्हारे बच्चे मेरे बच्चों से मिलकर हमारे बच्चों को पीट रहे हैं, इनको रोको। रुकावट डालो। पश्चिम में सब अस्तव्यस्त हुआ है। फिर और एक ऊपर की बात है : आत्मा के मिलन की। वहां प्रार्थना पैदा होती है। वैसा प्रेम मीरा ने 'जाना, कि चैतन्य ने, कि राधा ने। वैसा प्रेम भक्तों ने जाना। उठना चाहिए उसी तक प्रेम, जहां दो प्रकाश की तरह मिलन हो जाए, कोई संघर्षण न हो। मिलन शात, सहज हो। और जब तुम किसी एक व्यक्ति से भी आत्मा के तल पर मिल जाओगे, तो तुम्हें पता चलेगा जब एक से मिलने में इतना आनंद है, तो फिर सर्व से मिल जाने में कितना आनंद न होगा! फिर तो तुम गणित को स्वयं ही फैला लोगे। तुम कहोगे, जब एक व्यक्ति के प्राणों से प्राण मिला लेने में इतने सुख का सौरभ,
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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