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________________ कहां द्वैत, कहां अद्वैत?' नहीं, अब न तो यह कह सकता हूं एक है न यह कह सकता हूं दो है। सिद्धातों की सब बात कवास हो गयी। आपने सब सिद्धात मझसे निकाल लिये। अब तो मझे सत्य में छोड़ दिया। सत्य तो बस है। उसके संबंध में ज्यादा नहीं कहा जा सकता। जैसा है, है। एक है, दो है, छोटा है, बड़ा है, लाल है, पीला है, हरा-काला है, कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कोई व्याख्या, कोई परिभाषा, कोई निर्वचन नहीं हो सकता। न तो कह सकते दो है और न कह सकते एक है। बस इतना कह सकते हैं, है। और खूब है, भरपूर है। होना मात्र कहा जा सकता है। 'नित्य अपनी महिमा में स्थित हुए मुझको कहां भूत है कहा भविष्य है, अथवा कहां वर्ततान भी है, अथवा कहां देश भी है?' क्व भूतं क्व भविष्यदवा वर्तमानमपि क्व वा। क्व देश: क्व च वा नित्यं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे। समझना। 'नित्य अपनी महिमा में स्थित हुए......।' नित्य को समझो। नित्यता, इटर्निटी, इसे समझो। साधारणत: हम जीते हैं समय में। और जो समाधिस्थ हुआ वह जीता है नित्यता में। समय में नहीं। फर्क क्या है? समय बदलता है, नित्यता नित्य है, बदलती नहीं। इसीलिए तो नित्य नाम दिया है। समय अनित्य है। आया, गया। आ भी नहीं पाया कि गया। अभी सुबह हुई, अभी दोपहर होने लगी, अभी दोपहर हो ही रही थी कि सांझ आ गयी, कि रात आ गयी, कि फिर सुबह हो गयी-आया और गया। आना और जाना, आवागमन है समय। प्रवाह। लहरों की तरह। मन तो जीता है समय में। और अगर तुम्हें स्वयं को जानना है तो समय के पार हटना पड़े। समय का विभाजन है. भूत-जो जा चुका, कभी था, अब नहीं है। भविष्य-जो कभी होगा, अभी हुआ नहीं है। और दोनों के बीच में वर्तमान का छोटा-सा क्षण। वह भी बड़ा कंपता हुआ क्षण है। वर्तमान का अर्थ हुआ भविष्य भूत हो रहा है। वर्तमान का क्या अर्थ होता है? इतना ही अर्थ होता है कि जो नहीं था, फिर नहीं हो रहा है। एक नहीं से दूसरी नहीं में जाते हुए जो थोड़ी सी देर लगती है क्षण भर को, उसको हम वर्तमान कहते हैं। अभी नौ बजकर पांच मिनट हुए हैं यह जो सेकेंड़ है, मैं बोल भी नहीं पाया और गया। सेकेंड कहने में जितनी देर लगती है? वह ज्यादा है, सेकेंड उससे जल्दी बीत गया है। आ भी नहीं पाता, एक क्षण पहले भविष्य में था-तब भी नहीं था, और एक क्षण बाद फिर अतीत में हो गया-फिर नहीं हो गया, एक नहीं से दूसरी नहीं में चला गया, और जरा-सी देर को इालक मारा, पलक मारा, इसीलिए तो पल कहते हैं। पत्न इसीलिए कहते हैं उसे कि पल बस गया। एक झलक दी और गया। यह समय की तीन स्थितियां हैं- भूत तो है ही नहीं, भविष्य तो है ही नहीं और वर्तमान भी क्या खाक है? जरा-सा है। न होने के बराबर है। इन तीनों के पार जो है, उसका नाम नित्य।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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