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________________ है! मैंने कहा, कुछ शर्म करो, संकोच खाओ। वह कहने लगे, क्या मतलब आपका? संकोच, शर्म? सब तीर्थकर, सब अवतार, सब बुद्धपुरुष यहीं पैदा हुए हैं मैंने कहा कि फिर भी मैं तुमसे कहता हूं कि संकोच खाओ। डूब मरो चुल्ल भर पानी में। उन्होंने कहा, आपका मतलब क्या है? मेरी कुछ समझ में नहीं आता। यह तो महिमा की बात है। ____ मैंने कहा, महिमा की बात नहीं है। तुमसे ज्यादा अधार्मिक कोई नहीं होगा, तब तो इतने धर्मगुरु, अवतार, तीर्थंकर, इनको पैदा होना पड़ा। जिस घर में रोज डाक्टर आएं, उसका मतलब कोई बड़ी महिमा की बात है! कि सब बड़े -बड़े डाक्टर रोज हमारे यहां आते हैं, देखो कारें खड़ी रहती हैं डाक्टरों की! ऐसा कोई दिन नहीं जाता जिस दिन डाक्टर न आते हों। हमारे घर की महिमा! लोग कहेंगे, यह महिमा की बात नहीं, तुम बीमार हो। घर तो वह महिमावान है जहां डाक्टरों की कोई जरूरत नहीं। जहां डाक्टर आते ही नहीं। जहां दवा की बोतल आयी ही नहीं। ___ लाओत्सु यही कहता है। लाओत्सु कहता है, धन्य वे लोग थे जब धर्म का किसी को पता ही नहीं था कि धर्म क्या होता है! धर्म का पता तो तभी होता है जब अधर्म हो जाता है। अधर्म के इलाज के लिए धर्म की बोतल लानी पड़ती है, दवा लानी पड़ती है। अधर्म फैल जाता है तो धर्मगुरु होता है। दुनिया में अगर फिर कभी धर्म होगा तो धर्मगुरु पहली चीज होगी जो विदा हो जाएगी। धर्मगुरु की क्या जरूरत! स्वास्थ्य हो तो चिकित्सक की क्या जरूरत? लोग ईमानदार हों तो सिखाना थोडे ही पड़े कि ईमानदारी से जीओ। और तुम लाख सिखाओ, क्या होता है! एक ईसाई फकीर रविवार को चर्च में बोलता था और उसने कहा, अगले रविवार को सत्य के ऊपर मैं व्याख्यान दूंगा, लेकिन सबसे मेरी प्रार्थना है कि ल्यूक का अड़सठवां अध्याय पढ़कर आना। और जब वह बोलने खड़ा हुआ दूसरे रविवार को तो उसने खडे होकर कहा कि भाइयो, जिन लोगों ने ल्यूक का अडुसठवां अध्याय पढ़ लिया हो, वे सब हाथ उठा दें। एक को छोड़कर सब लोगों ने हाथ उठा दिये। उस फकीर की आंखों से आंसू गिरने लगे। उसने कहा, अब सत्य पर बोलने से क्या सार है? क्योंकि ल्यूक का अड़सठवां अध्याय है ही नहीं, तुम पढ़ोगे कैसे! किसी ने बाइबिल थोड़े ही उठायी, किसी ने खोली थोड़े ही। कौन इन पंचायतों में पड़ता है! अब सत्य पर, उसने कहा, क्या खाक बोलूं? अब असल पर ही बोलना ठीक है। मगर फिर भी धन्यभाग कि कम से कम एक आदमी तो हाथ नहीं उठाया। वह आदमी खडा हुआ, उसने कहा कि मैं जरा कम सुनता हूं, आपने क्या पूछा? आप उस अड़सठवें अध्याय के संबंध में तो नहीं पूछ रहे हैं? वह तो मैं पढ़ा हूं। सत्य की चर्चा चलती है, जो असत्य में निष्णात हैं उनको समझाया जाता है। अहिंसा की बात उठती है, क्योंकि लोग हिंसा में डूबे हैं। लोग बेईमान हैं, ईमानदारी समझानी पड़ती है। लोग पापी हैं, इसलिए पुण्य का गुणगान गाना पड़ता है। अन्यथा इनकी क्या जरूरत! यह परम अवस्था है स्वमहिमा की। कहने लगे जनकस्वमहिम्नि स्थितस्य में। यह अपनी महिमा में मुझे विराजमान कर दिया। एक चुटकी बजा दी और मुझे मेरी महिमा
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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