SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर रहे हो कि जब साहस होगा, तब। परसों एक युवती ने संन्यास लिया। महीने भर से आकर रुकी है, बार-बार आकर कहती है कि मुझे लेना है, लेकिन पूरा मन नहीं हो पा रहा है। तो मैंने कहा कि यह पूरा मन तो कभी किर का नहीं हुआ| पूरा मन तो तब होगा, जब तू पूरी जागेगी। अभी तो पूरा मन हो नहीं सकता। अभी तो इक्यावन प्रतिशत भी हो रहा हो और उनचास प्रतिशत न हो रहा हो, तो ले ले। इतना ही फर्क हो अगर, एक-दो प्रतिशत का। इक्यावन प्रतिशत मन कहता है, लेना; और उनचास प्रतिशत मन कहता है, नहीं लेना, तो ले ले। क्योंकि नहीं लिया तो उनचास प्रतिशत मन का साथ दिया। निर्णय तो कुछ करना ही पड़ेगा। तुम थोड़ा सोचो! जब तुम कहते हो, संन्यास अभी कैसे लें, पूरा निर्णय नहीं है, तो संन्यास न लेने का निर्णय कर रहे हो। निर्णय तो कर ही रहे हो। न लेने का निर्णय पूरा है? तो ज्यादा-से-ज्यादा बात प्रतिशत की हो सकती है। अगर आधे मन से ज्यादा लेने के लिए तैयार हो, तो ले लो। अगर आधे मन से कम तैयार हो, तो छोड़ो, यह फिकर छोड़ो। मगर दो में से कुछ निपटारा कर लो। ऐसे बीच में मत अटके रहो। न घर के न घाट के। इससे तुम्हारा न तो चित्त संसार में लगेगा और न चित्त संन्यास में लगेगा। संसार में रहोगे, संन्यास की सोचोगे; संन्यास में उतर नहीं पाते, तो सब दुविधा बनी रहेगी। डांवाडोल रहोगे। स्व-चित्त हो जाओ। या तो तय कर लो कि नहीं लेना है। मगर वह भी होशपूर्वक तय कर लो। फिर बात ही छोड़ दो। या तय कर लो कि लेना है। साहस इत्यादि का बहुत विचार मत करो। एक किनारे रखो साहस, भय, सुरक्षा, असुरक्षा की सब धारणाएं। और खयाल रखो कि कुछ चीजें हैं जो लेकर ही अनुभव होती हैं, बिना लिये अनुभव नहीं होती। उस युवती को जब मैंने कहा कि अगर तुझे तैरना सीखना है तो पानी में उतरना ही पड़ेगा क्योंकि तैरना सीखने का कोई और उपाय नहीं। गद्दे-तकिये लगाकर तू तैरना नहीं सीख सकेगी। ही, यह बात सच है कि थोड़े उथले पानी में उतरो पहले, फिर और थोड़े गहरे में, फिर और थोड़े गहरे में। संन्यास की जो धारणा मैंने तुम्हें दी है, इससे ज्यादा और किनारे की धारणा क्या हो सकती है! इससे और उथला पानी क्या हो सकता है! बस, गले-गले पानी में उतरो। वहा हाथ-पैर चलाना सीख लो। एक दफा हाथ-पैर चलाना आ गया तो और गहरे में, और गहरे में। उस युवती ने एक क्षण सोचा और फिर उसने कहा कि ठीक! लेती हूं डर है, इर के बावजूद लेती हूं। ऐसे ही घटता है। और यह बुद्धि का ही लक्षण है। सिर्फ जो जड़बुद्धि हैं, वे चिंता इत्यादि नहीं करते। जड़बुद्धि को कहा संन्यास लेना है, वे कहते हैं, अच्छी बात है। मगर ये वे ही लोग हैं, जिनके जीवन में किसी तरह का चैतन्य नहीं है। यह कोई बहुत गुणवत्ता की बात नहीं है। इनसे कोई कहेगा छोड़ना है, तो ये कहेंगे, अच्छी बात है। न इनको लेने का कुछ मतलब है, न छोड़ने का कुछ मतलब है। इनके जीवन में कोई मूल्य नहीं है जिसका ये निर्धारण करते हों। इनका जीवन मूल्यहीन है। तो इसे कोई चिंता भी मत समझो कि बड़े विचार उठते हैं, संदेह उठते हैं; स्वाभाविक है। बुद्धिमान आदमी को उठते ही हैं। लेकिन बुद्धिमान आदमी इन सबके बावजूद भी यात्रा पर निकलता है।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy