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________________ कितने फूलों के ओंठों पर लिखी हुई रंगों की कविता खुशबू के हस्ताक्षर करती डोल रहीं तितली-बालाएं सोन जुही के कानों में कुछ कहती भंवरों की मालाएं वासंती चूंघट के भीतर छिपे हुए हैं मधु के प्याले मानो रेशम को बस्ती में खुली पड़ी हों मधुशालाएं मिट्टी भी हंसती है, ऐसा सुनकर मैं हंसता था पहले फूलों का परिवार देखकर अब विश्वास हुआ है मुझको तुम जरा देखो, उत्सव ही हो रहा है। अस्तित्व बड़े गहरे रास में संलग्न है। रसों वै सः। परमात्मा रस ही रस है। अस्तित्व में पीड़ा कहीं है नहीं। पीड़ा आदमी का सजन है। पीड़ा आदमी की चूक है। अस्तित्व में मृत्यु होती ही नहीं। यहां जीवन का विराट विस्तार है। अस्तित्व में मृत्यु कभी घटती ही नहीं। मृत्यु आदमी का आविष्कार है। आदमी ने अहंकार आविष्कार कर लिया, अब अहंकारी की मृत्यु होती है, क्योंकि आदमी जो भी आविष्कार करेगा, वह मिटेगा। आदमी की बनायी चीज अमर कैसे हो सकती है! आदमी की बनायी चीज मरणधर्मा होगी। जो भी बनाया जाता है, वह मिटेगा। जो अनबना है, वही नहीं मिटेगा। जो कभी नहीं जन्मा है, उसी की मृत्यु नहीं होगी। जिसका जन्म होगा, उसकी तो मृत्यु होगी। देखो, मकान बनाते हो, मकान गिरेगा। कितना मजबूत बनाओ, फर्क नहीं पड़ता। दो दिन बाद गिरेगा, चार दिन बाद गिरेगा, कि हजार साल बाद गिरेगा। लेकिन देखते हो, रेत के एक छोटे-से कण को मिटाने का कोई उपाय नहीं है। वैज्ञानिक कहते हैं, नहीं मिटाया जा सकता। लाख उपाय करो, एक छोटे-से रेत के कण को मिटा नहीं सकते। मामला क्या है? हम महल बनाते हैं, मिट जाते हैं। रेत का कण भी नहीं मिटता! क्योंकि रेत का कण बनाया नहीं गया है। जो चीज बनायी गयी है, वह मिटेगी। जो है सदा से, वही सदा होगी। निर्मित नष्ट होता है। अजन्मा शाश्वत है। आदमी कुछ चीजें बना लेता है, तो मिट जाती हैं। मिटती हैं तो घबड़ाहट होती है। मिटने की आशंका से मन बहुत चिंतातुर हो जाता है। जो भी निर्मित है, जाएगा। बुद्ध ने कहा है, सब संघात बिखरेंगे। लेकिन अस्तित्व तो कभी नहीं मिटता। तो अपने भीतर उसको खोज लो जो कभी नहीं मिटता, तो तुम ध्यानी हो गये, ज्ञानी हो गये।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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