SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हैं एक तरह की तृप्ति, तो उनको भरोसा नहीं आता कि मामला क्या है! इतनी दरिद्रता में तृप्ति हो कैसे सकती है? लेकिन इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण हैं। दुखी आदमी हार्ट अटैक से परेशान होता ही नहीं। दुखी आदमी को अल्सर होते ही नहीं। दुख में इतनी उत्तेजना नहीं है जितनी सुख में है। तुम जितने सुख में डांवाडोल हो जाते हो, उतने दुख में थोड़े ही डांवाडोल होते हो। सुखी ही डांवाडोल होता है, दुखी डांवाडोल नहीं होता। सुखी ही चिंतित होता है। __तुमने पुराण पढ़े हैं? तुमने सदा पढ़ा होगा कि जब भी कोई ऋषि-मुनि अपनी तपश्चर्या की ऊंचाई पर आने लगता है, तो इंद्र का सिंहासन डोलने लगता है। लेकिन तुमने कभी ऐसा सुना है कि नरक में जो बैठे हैं यमदेवता, उनका सिंहासन किसी भी कहानी में डोला? वह डोलता ही नहीं। वह बैठे अपने भैंसे पर आराम कर रहे हैं। ये ऋषि-मुनि लाख करें, कुछ जो करना है करते रहो, उनका क्या बिगाड़ लोगे! वह अपने मजे से बैठे हैं। मगर इंद्र का सिंहासन डोलने लगता है। या इंदिरा का, मगर डोलता है। इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। चले ऋषि-मुनि, कोई जयप्रकाश, लेकर अपना त्रिशूल इत्यादि, उपद्रव खड़ाकर दें! सिंहासन डोलने लगता है। लेकिन सिंहासन ही डोलता है। गरीब का है ही क्या? इलाओगे क्या? बिना ही सिंहासन के जमीन पर बैठे हैं, क्या खाक इलाओगे? छीन क्या लोगे? झोपड़पट्टे वाले से तुम क्या छीन सकते हो? मैं पढ़ रहा था एक अफ्रीकी कहानी कि एक गरीब औरत, उसका छोटा बच्चा, सर्दी के दिन और उसके पास कपड़े उडाने को नहीं तो उसने कुछ भी, लकड़ी के टुकडे, चिदिया, कागज, अखबार, इन सबका खूब पूर बना लिया और उसको उसमें ढांप देती थी। वह बेटा मस्त सो जाता। एक रात उस बेटे ने कहा, मा, जरा उन गरीबों की तो सोचो जिनके पास लकड़ी के ये टुकड़े, अखबार और ये चिदिया नहीं होंगी, वे बेचारे कैसे सोते होंगे! वह मजे से रात नींद लेता है। वह सोच रहा है यह बड़ी अमीरी है। जरा उनकी तो सोचो, वह कहने लगा, जिनके पास लड़की के टुकड़े और ये चीजें नहीं होंगी, वे कैसे सोते होंगे! दुख इतना नहीं डांवाडोल करता जितना सुख कर जाता है। इसीलिए समस्त साधकों ने दुख को तो वरण कर लिया है, सुख को छोड़ दिया है। क्योंकि उन्होंने देखा कि दुख इतना दुखी नहीं करता। अंततः दुख सुख से आता है। तप का इतना ही अर्थ है, तपश्चर्या का इतना ही अर्थ है कि सुख में से तो कुछ तुम पा सकते हो, इसकी आशा ही मत रखना, हौ, दुख में से कुछ पाया जा सकता है। दुख में से कुछ पाया जा सकता है, यही तप का अर्थ है। सुख में से कुछ भी नहीं पाया जा सकता, सुख बिलकुल बांझ है। लेकिन परमज्ञान की अवस्था तो वही है जहां न सुख सुखी करता है, न दुख दुखी करता है। कोई चीज डुलाती नहीं, आदमी अपने स्वयं में थिर है। 'शांत बुद्धिवाला पुरुष न लोगों से भरे नगर की ओर भागता है और न वन की ओर ही वह सभी स्थिति और सभी स्थान में समभाव से ही स्थित रहता है।' न धावति जनाकीर्ण नारण्यमुपशांतधीः। यथातथा यत्रतत्र सम एवावतिष्ठते।।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy