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________________ वह हर्षोन्माद से भर जाता! लोग कहते, भई, यह खतरनाक आदमी है, इसको यहां से जाने दो। अगर पता चल जाए, तो झंझट होगी। यह तो झंझट में पड़ेगा ही क्योंकि मुसलमान देशों में यह घोषणा करना कि मैं भगवान हं, बड़ी कठिन बात है। यह तो बर्दाश्त के बाहर है। उसे जगह -जगह समझ गया, लोग उसे प्रेम करते थे। वह अनेक गुरुओं के पास रहा–गुरु उसे प्रेम करते थे वे कहते थे, पागल, हमें भी पता है कि यह बात ठीक है, मगर कहने की नहीं। तो मंसूर कहता, फिर तुम्हें पता नहीं है। जब पता है कि यह बात ठीक है तो रोकोगे कैसे? यही तो जीसस ने सूली पर कहा, कि हे प्रभु, तेरी मर्जी पूरी हो! बुद्धपुरुष कार्य-कारण के नियमों में बाधा नहीं बनते। अनवरोध। जो होता है, होने देता है। तो किसी क्षण में अगर जरूरत हो, तो ज्ञानी अहंकार का भी उपयोग करता है। और किसी क्षण में जरूरत हो तो विनम्रता का भी उपयोग करता है। लेकिन हर हाल, जो भी ज्ञानी से होता है, ज्ञानी उसके बाहर बना रहता है। चाहे नींद हो, चाहे चिंता हो, चाहे इंद्रियां हों, चाहे बुद्धि-विचार हो और चाहे अहंकार हो। शानी किसी भी कृत्य में नहीं समाता। इस बात को याद रखना। और इसलिए ज्ञानियों को कृत्यों के आधार से तौलना मत, क्योंकि ज्ञानी कृत्य में नहीं समाता। तुमने अगर कृत्य से देखा तो तुम ज्ञानी को देख ही न पाओगे| ज्ञानी कृत्य में समाता नहीं, ज्ञानी कृत्य के पार है। कृत्य का कोई मूल्य नहीं है। इसलिए कभी ज्ञानी के हाथ में तलवार मिल सकती है। मेरे पास जैन आते हैं, वे कहते हैं, आप महावीर के साथ मुहम्मद का नाम ले देते हैं और मुहम्मद तलवार लिये हैं! मेरी एक किताब को किसी ने जाकर काजीस्वामी को भेंट किया। उन्होंने किताब उलट-पुलटकर देखी। उन्होंने कहा, और तो सब ठीक है, लेकिन इसमें यह मुसलमान, फरीद का नाम आया, हटाओ यहां से। और तो सब ठीक है, लेकिन यह इसमें मुसलमान का नाम कैसे? मांसाहारी का नाम कैसे? जैन कहते हैं, आप कम-से -कम महावीर के साथ मुहम्मद का नाम तो न लें। तलवार हाथ में! कृत्य से जांचते हो तुम? तुम फिर नहीं पहचान पाओगे। मुहम्मद के हृदय को देखो। तुम महावीर जैसी ही करुणा पाओगे। असल में उसी करुणा के कारण तलवार हाथ में है। समय अलग है, स्थिति अलग है, लोग अलग हैं, इसलिए अभिव्यक्ति अलग है। लेकिन भीतर का सत्य तो एक ही है। जैसे महावीर को तुम उनके कृत्यों के बाहर पाओगे, वैसे ही मुहम्मद को भी उनके कृत्यों के बाहर पाओगे। करने से ज्ञानी को सोचना ही मत। क्योंकि ज्ञानी जीता जानने में, करने में नहीं। इसलिए करने से सोचना ही मत। नहीं तो तुम ज्ञानियों में बड़ी मुश्किल में पड़ जाओगे महावीर ने कपड़े फेंक दिये। अब तुम किसी दूसरे को पूछो मुसलमान को पूछो, ईसाई को पूछो! वह कहेगा, यह जरा अशिष्टता है। लेकिन कृत्य में मत खोजना। कृष्ण तो युद्ध में उतर गये, इतना बड़ा युद्ध करवा दिया। कृत्य से मत सोचना। कृत्य का कोई मूल्य ही नहीं है, क्योंकि ज्ञानी कृत्य के बाहर है। असल में जिसने ऐसा जाना कि मैं कर्ता नहीं हूं,
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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