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________________ हो सकती है, शब्द के रथों पर बैठकर यात्रा हो सकती है। सूत्रों को बहुत ध्यानपूर्वक सुनना क्योंकि इनसे ऊंचाई के सूत्र कभी नहीं कहे गये हैं। फिर बाद में जो थोड़े सूत्र हैं, वे तो जनक की ओर से हैं। गुरु ने इतना दिया, इतना दिया, वे धन्यवाद-स्वरूप हैं। वे आभार-स्वरूप हैं। और इसलिए भी हैं कि जनक कह सकें कि मैं समझ पाया या नहीं। तो जो कहा है अष्टावक्र ने, उसी को बहुत संक्षिप्त में सूत्र में, जनक ने फिर दोहरा दिया है। उस दोहराने से केवल इतना बताया है कि जो तुमने दिखाया, वह देख लिया गया है । तुम्हारा श्रम व्यर्थ नहीं गया। तुमने जो मेहनत की थी, वे बीज अंकुरित हुए हैं। फूल खिल गये हैं। आज के बाद के सूत्र तो निष्पत्तिया हैं, सारे अष्टावक्र के वचनों का जो सार - निचोड़ है। लेकिन आज के सूत्र शिखर हैं, ये गौरीशंकर हैं। पहला सूत्र- सुप्तोउपि न सुमुप्तौ च स्वमेउपि शयितो न च । जागरेउपि न जागर्ति धीरस्तृप्तः पदे पदे ।। 'जो सुषुप्ति में भी नहीं सुप्त है और जो स्वप्न में भी नहीं स्वप्नाया, और जो जाग्रत में भी नहीं जाया हुआ है, वह धीरपुरुष क्षण- क्षण तृप्त है।' इसे समझने के पहले बुद्धपुरुषों के मनोविज्ञान के चार खंड समझ लेने चाहिए | पश्चिम में तो अभी दो सौ वर्ष पहले तक जो भी मनोविज्ञान विचार करता था, उसकी सीमा जागृति थी। सुबह जब आख खुलती है और रात तुम सो जाते हो इसके बीच ही जो घटता था, मनोविज्ञान उसी का अध्ययन करता था। किसी को यह भी ख्याल न उठा था कि रात भी, सोते भी तो मनुष्य का मन ही काम कर रहा है। वह भी तो मनोविज्ञान है। और जब आदमी आख खोलकर देखता है, तब भी मन का व्यवहार है और जब आख बंद करके स्वप्न देखता है, तब भी मन का व्यवहार है। सिग्मंड फ्रायड ने पश्चिम में क्रांति ला दी। बात पश्चिम में बड़ी क्रांतिकारी लगी, क्योंकि पूरब के ज्ञान से पश्चिम अपरिचित था, अन्यथा सिग्मंड फ्रायड ने जो कहा, उसका कोई भी बड़ा मूल्य नहीं है। पूरब तो सदा से यही कहता रहा । सिग्मंड फ्रायड ने क्रांति खड़ी कर दी जब उसने कहा कि मनुष्य के मन की असली खोज तो स्वप्न में होगी, निद्रा में होगी। क्योंकि जागरण में तो बड़ा धोखा है। जाग्रत में तो तुम जो दिखलाते हो, उसके सच होने की बहुत कम संभावना है। तुम जो चेहरे ओढ़ लेते हो, वे अक्सर झूठे हैं। तो जागृति से तो तुम्हारे मन का ठीक-ठीक पता चलेगा नहीं, जागृति तो धोखा पैदा करती है। इससे तो जो पता चलता है, इतना ही पता चलता है कि ऐसे तुम नहीं हो आदमी मुस्कुरा रहा, मित्रता दिखला रहा, और हो सकता है भीतर छुरे पर धार रख रहा है तुम्हारे लिए। जितनी छुरे पर धार रख रहा है, उतना ही मुस्कुरा रहा है, ताकि तुम्हें कहीं छुरे की धार दिखायी न पड़ जाए। वह मुस्कुराहट आवरण है। मित्रता दरसा रहा है, क्योंकि गला काटना है। उतनी ही ज्यादा मित्रता दिखला रहा है, उतना ही हमजोलीपन दिखला रहा है। चेहरे तो बड़े झूठे हैं!
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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