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________________ जितने अकड़े हो, उतनी अशांति है। उसी अनुपात में अशांति है। जितने झुकोगे उतने शांति का अनुभव होगा। किसी के चरणों में कभी सिर रखकर देखा? चाहे चरण इस काबिल न भी रहे हों इसकी फिकिर ही मत करो। मुझसे कभी कभी लोग पूछते हैं कि यह हम कैसे जानें कि किसके चरण लगें? कैसे पक्का हो कि सदगुरु है, कि कुगुरु है, कि फलां-ढिका? मैंने कहा कि तुम इसकी फिकिर छोड़ो, तुम्हें लेना-देना इससे क्या? कोई भी हो, तुम झुकने का मजा ले लो। झुकने में असली बात है, किसके सामने झुके यह उतनी मूल्यवान बात नहीं है। इसलिए हमने पत्थर की मूर्तियां तक मंदिरों में बनाकर रखीं। उन्हीं के सामने झुक जाओ। मुसलमानों ने मूर्तियां हटा दी हैं, लेकिन झुकना तो नहीं हटाया है, नमाज में झुकते तो हैं। झुकना नहीं हटाया जा सकता है, मूर्ति हटायी जा सकती है। मूर्ति तो गौण थी। झुकना नहीं हटाया जा सकता है। कहीं भी झुको। चलो, काबा की तरफ सिर करके झुको। तुम मेरी बात खयाल में ले लेना। जिस विषय के प्रति तुम झुकते हो उसका कोई मूल्य नहीं है, मूल्य तुम्हारे झुकने का है। तुम झुके इसमें मूल्य है। क्योंकि झुक कर तुम किसी दिन पाओगे कि अपूर्व शाति की वर्षा हो गयी। तुम झुके थे और कुछ बह गया। कुछ रसधार आ गयी। कुछ उमंग, जिससे मन हलका हो गया, निबोझ हो गया। फिर तुम और- और झुकोगे। फिर तो झुकने का स्वाद लग जाएगा। फिर तो तुम जब खड़े हो, तब भी भीतर तुम झुके ही रहोगे तुम्हारा झुकना तब सहज स्वभाव हो जाएगा। लेकिन मेरे देखे, असली सवाल समर्पण, संन्यास और झुकने का नहीं है। और भी असली सवाल यह है कि शायद तुम अभी संसार से ऊबे नहीं, हारे नहीं। असली बात वहा अटकी होगी। लोग संन्यस्त होना चाहते, लेकिन अभी संसार में रस अटका है। ध्यान करना चाहते, लेकिन अभी लगता विचार में भी कुछ बल है, विचार से भी बहुत कुछ मिलता है। श्रद्धा जगाना चाहते, लेकिन तर्क को अभी संभाले रखते कि शायद काम पड़ जाए। जब तक तर्क पर पूरी अश्रद्धा न हो जाए तब तक श्रद्धा पर श्रद्धा न होगी। और जब तक ऐसा साफ न दिखायी पड़ जाए कि संसार असार है, तब तक तुम संन्यास की तरफ जा न सकोगे। तो तुम तो कहते हो, ब्राह्मण होने का भाव शायद बाधा बन रहा है, मेरे देखे उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि अभी संसार से तुम चुके नहीं अभी फल पका नहीं, अभी कच्चे हो। 1 . ऐसे कुछ बदल गये हम बेमानी अब हर मौसम रंग बरसे या झड़ी लगे वासंती ज्वार ज्वर जगे कित नहीं सरसेंगे अब
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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