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________________ फर्क समझना। रस्किन ने कहा है, दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक वे जो सत्य के साथ खड़े होने को तैयार हैं। दूसरे वे, जो सदा सत्य को अपने साथ खड़ा कर लेते हैं। पहले लोग ही सत्य को खोज पाते हैं, दूसरे लोग कभी नहीं। सत्य को तुम अपने साथ खड़ा मत करना। क्योंकि अगर सत्य तुम्हें पता ही होता तब तो खोजने की कोई जरूरत ही न थी। सत्य तुम्हें पता नहीं है, इसीलिए तो खोज है। तो जहां सत्य हो, वहा तुम जाना। अगर तुम्हें मेरी बात सुननी है, तो तुम्हें अपने मन को एक तरफ रखकर सुनना होगा। स्वभावत: ब्राह्मण के पास काफी बड़ा मन है। शूद्र से ज्यादा बड़ा मन है। शूद्र का मन तो ब्राह्मण ने बनने ही नहीं दिया, उसको वेद पढ़ने ही नहीं दिया, रामायण पढ़ने नहीं दी, गीता पढ़ने नहीं दी, उसको वंचित कर दिया। तो शूद्र का मन तो बनने ही नहीं दिया। ब्राह्मण के पास बड़ा मन। ब्रह्म तो बिलकुल नहीं, मन बहुत बड़ा| और वह बहुत बड़ा मन ही बाधा। निश्चित ही ब्राह्मण होना बाधा बन रहा होगा। लेकिन जरूरी नहीं है कि तुम उसको बाधा बनाओ। जो बाधा है, उसको तुम सीडी भी बना सकते हो। राह पर एक बड़ा पत्थर पड़ा है, उसको तुम रुकावट भी समझ सकते हो और रुक जाओ, ठहर जाओ कि अब कहां जाएं, पत्थर आ गया! और तुम पत्थर पर चढ़ भी सकते हो। चढ़ जाओ, तो शायद तुम्हें और दूर के दृश्य दिखायी पड़ने लगें। तुम पर निर्भर है, पत्थर सीढ़ियां बन सकते हैं, सीढ़ियां पत्थर बन सकती हैं। अवरोध सहयोगी हो सकते हैं, सहयोग अवरोध हो सकते हैं। मैं तुमसे कहंगा ब्राह्मण घर में पैदा हुए हो इस अवरोध को भी, इस बाधा को भी सीडी बना लो। अब तुम्हारे सामने एक चुनौती है कि ब्राह्मण घर में तो पैदा हो ही गये अब वस्तुत: ब्राह्मण हो जाओ। अभी जो जाति से है, संस्कार से है, उसे जीवंत अनुभव क्यों न बना लो। एक सौभाग्य है तुम्हारा कि तुम ब्राह्मण हो, अब उस सौभाग्य को और महासौभाग्य में क्यों न परिणित कर लो। बाधा क्यों बनाते हो? सीढ़ी बनाओ। हर चीज को सीडी बनाया जा सकता है। हर चीज को सीडी बनाया जा सकता है। जहर अमृत हो जाता है, समझदार का हाथ होना चाहिए। नहीं तो अमृत भी जहर हो जाता है। देखते हैं, चिकित्सक जहर को भी औषधि बना लेता है। तो ब्राह्मण होना तो कुछ बुराई नहीं है। सौभाग्य है, धन्यभागी, अच्छे घर में पैदा हुए, जहां हवा थी, ईश्वर की चर्चा थी, शब्द में ही सही, लेकिन ईश्वर की कुछ भनक तो थी। दूर की ही आवाज सही, लेकिन थी तो आवाज ईश्वर की ही। जहां ऋषियों के वेद और उपनिषदों का गुंजार था। बहुत पुराना हो गया, बहुत पुराना हो गया बहुत धूल जम गयी लेकिन फिर भी पीछे तो सत्य छिपा ही पड़ा है। अंगार कितना ही दब गया हो राख में, बुझ तो नहीं गया है। राख की ही पूजा चल रही हो, फिर भी अगर थोड़ा राख को हटाओगे तो अंगार मिल जाएगा। सौभाग्य समझो इसे। मैं जब तुमसे कह रहा हूं कि सौभाग्य समझो तो मेरी बात को गलत मत समझ लेना। यह
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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