SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। संन्यास का अर्थ है, सूली और पुनरुज्जीवना पुराने को मिटा देना, नये को जन्माना | तुम कहते हो, 'मैं ब्राह्मण हूं और शायद यही भाव समर्पण में बाधा बन रहा है। ' शायद नहीं, निश्चित यही भाव। एक तो ब्राह्मण को यह खयाल होता है कि मैं जानता ही हूं, क्योंकि वह शास्त्र का ज्ञाता होता है। एक मित्र मुझे पत्र लिखते थे, त्रिवेदी हैं। मैं भूल सें कुछ चूक हो गयी होगी- उनको पत्र लिखा तो द्विवेदी लिख दिया। वह बड़े नाराज हो गये। पत्र आ गया उनका कि आपने यह क्या किया ! मैं त्रिवेदी हूं, तीन वेदों के ज्ञाता को आपने एक क्षण में दो वेदों का शांता बना दिया! तो मैंने उन्हें पत्र लिखा, उसमें चतुर्वेदी लिख दिया। अब और क्या करूं! फिर उनका पत्र आया कि आप बात क्या है, आप भूल क्यों करते हैं? मैंने कहा, भूल नहीं कर रहा, जुर्माना भर रहा हूं। एक वेद छीन लिया था, एक जोड़ दिया, लेन-देन बराबर हो गया। ब्राह्मण को तो बोध है कि मैं जानता हूं। और ज्ञान से बड़ी अकड़ कहीं कोई दूसरी होती है ! शान की अकड़ के कारण आदमी अज्ञानी रह जाता है। जानना ज्ञान नहीं है, ज्ञान के त्याग से जानना घटित होता है। जब छूट जाते हैं शास्त्र और शब्द और रह जाता है मौन, निर्विचार, निःशब्द; शास्त्र विदा हो जाते हैं, कुरान, वेद, बाइबिल, गीता, सब विदा हो जाते हैं, बचते तुम अपने शुद्धतम 'चैतन्य में, निर्धूम जलती तुम्हारी चेतना की शिखा, वहां ज्ञान है। जहां सब जानकारी से मुक्ति हो जाती है वहां ज्ञान है। लेकिन तुम अगर वेद कंठस्थ करे बैठे हो, तो अड़चन होगी । तुम पहले से ही मान बैठे कि मुझे पता है। बिना जाने मान बैठे कि पता है। तो फिर रुकावट होगी। शायद नहीं, निश्चित इसी के कारण समर्पण में बाधा पड़ रही है। मेरे पास जो लोग आते हैं, जिनको ज्ञानी होने का दंभ है, उनको सबसे ज्यादा अड़चन होती है। पश्चिम का बहुत बड़ा संगीतज्ञ हुआ, मोजर्ट । उसके पास कोई संगीत सीखने आता तो वह पहले ही पूछ लेता, तुम जानते तो नहीं, पहले कुछ सीखा तो नहीं? अगर वह कहता कि पहले सीखा है, काफी सीखा है, तो वह कहता दुगुनी फीस लूंगा। और अगर कोई कहता कि मैं बिलकुल नया हूंं कुछ भी नहीं जानता, तो वह कहता आधी फीस ले लूंगा। लोग सुनते तो चकित होते। सीखनेवाला कहता हम सीखकर आए हैं, दस वर्ष का अभ्यास है, हमसे फीस कम लो। हमसे ज्यादा लेते हो? मोजॅर्ट कहता, तुम्हारे साथ ज्यादा मेहनत होगी। तुम पहले जो जानते हो वह मुझे मिटाना पड़ेगा। तुम्हारी स्लेट पर काफी लिखा जा चुका है, उसे साफ करना पड़ेगा, वह मेहनत अलग। उस मेहनत की भी फीस लगेगी। और जो कोरा आया है, उस पर तो मेहनत नहीं है। उस पर तो सीधा लिखा जा सकता है। अक्सर मेरे अनुभव में यह आया है, जो लोग कोरे आते हैं, वे बड़ी शीघ्रता से गति करते हैं ध्यान में। जो भरे - भराए आते हैं, उनको बड़ी अड़चन होती है। उनके सिद्धात, उनकी धारणाएं, उनके शास्त्र बीच में खड़े हो जाते हैं। वे मुझे सुनते ही नहीं। मैं कुछ कहता हूं, वे कुछ अर्थ करते हैं। उनके अनुवादों में बड़ी भूल हो जाती है।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy