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________________ द्वार बंद हो गये। जिसने अपने को श्रेष्ठ मान लिया, अवरुद्ध हो गयी यात्रा । जीसस ने कहा है, धन्य हैं वे जो अंत में खड़े हैं, क्योंकि वे ही मेरे प्रभु के राज्य में प्रथम हो जाएंगे। जो अंतिम हैं वे प्रथम हो जाएंगे और जो प्रथम हैं वे अंतिम हो जाएंगे। तुम कहते हो, मैं ब्राह्मण हूं। अगर तुम सच में ही ब्राह्मण हों - जन्म से ही, जाति से ही नहींतब तो कोई हर्जा नहीं है। लेकिन तब झुकना तुम्हें बिलकुल सरल होगा। तब समर्पण तुम्हारा स्वभाव होगा। तब अकड़ तुममें होगी ही नहीं। अगर अकड़ है, तो तुम ब्राह्मण नही हो सिर्फ जाति से ब्राह्मण हो। और जाति के ब्राह्मणत्व का क्या मूल्य है! जीवन का ब्राह्मणत्व चाहिए। प्राणों में उठे ऊर्जा । यह तो जातिवाली बात तो छिन जाएगी। यह तो मौत छीन लेगी। तुम अपने हाथ से छोड़ दो तो सौभाग्य है। नहीं तो मौत छीन लेगी। कब्र में जब पड़ोगे, चिता में जब जलोगे, तो चिता की आग यह फर्क न करेगी कि ब्राह्मण हो कि शूद्र । मौत कोई फर्क नहीं करती। मौत तो सिर्फ एक फर्क जानती है, अगर तुम सच में ही ब्राह्मण हो गये, ब्रह्म को जान लिया, तो फिर मौत तुम्हारी कभी नहीं होती। शरीर मरता है, मन मरता है, तुम नहीं मरते। तुम भीतर अपने अमृत में थिर होते हो। संन्यास का इतना ही अर्थ है, जो मौत करेगी, वह तुम स्वेच्छा से कर दो। जो मौत छीन लेगी, वह तुम छोड़ दो। संन्यासी प्रतिभाशाली व्यक्ति है, देख लेता है कि मौत तो यह करेगी ही, तो छीन -झपट से क्या सार, खुद ही दे देते हैं। जो बात जानी ही है) उसे छोड़ने का मजा क्यों न ले लें। जो देनी ही पड़ेगी, उसे दान क्यों न कर दें। संन्यासी बहुत कुशल है| बोधपूर्वक एक बात को समझ लेता है कि जो मौत नहीं छीनेगी, वही बचाने योग्य है। इसको तुम सूत्र समझो। हमेशा मौत को कसौटी बना लेना, कस लेना, यह बात मौत छीन लेगी? अगर छीन लेगी तो तुम्हीं छोड़ दो। अगर मौत इसे नहीं छीनेगी, फिर बचाओ; फिर यह बचाने योग्य है। जिसको तुम मौत के पार भी ले जा सकोगे अपने साथ वही बचाने योग्य है, क्योंकि व संपदा है। ये ब्राह्मण और शूद्र, और हिंदू और मुसलमान और जैन और ईसाई, ये मौत के साथ जाने वाले नहीं, ये सब जलकर राख हो जाएंगे। ये तुम्हारी खोपड़ी की बीमारिया हैं। ये कोई स्वस्थ होने के लक्षण नहीं हैं। पुराने शास्त्र एक अदभुत बात कहते हैं कि पैदा तो सभी शूद्र होते हैं-यह बात मेरी समझ में आती है–पैदा तो सभी शूद्र होते हैं, कोई कभी-कभार ब्राह्मण बन पाता है। ब्राह्मण भी शूद्र ही पैदा होते हैं। पैदा तो सभी शूद्र होते हैं। जन्म से कोई ब्राह्मण होता है! जीवन से कोई ब्राह्मण होता है। संन्यास ब्राह्मण होने का अवसर है। क्योंकि ब्रह्म को जानने का अवसर है। अजीजो सादा ही रहने दो लोह - ए - तुर्बत को हमीं नहीं तो ये क्या और निगार क्या होगा अब कब्र को खोद रहे हैं, नक्या कर रहे हैं, सुंदर बना रहे हैं, हीरे-जवाहरातों से जड़ रहे हैं। हमीं नहीं तो ये नक्या और निगार क्या होगा अजीजो सादा ही रहने दो लोह-ए-तुर्बत को
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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