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________________ दूसरा प्रश्न : मैं ब्राहमण हं, और शायद यही भाव समर्पण में बाधा बन रहा है। झुकने की आदत नहीं है और अब चाहता हूं तो भी पुरानी आदत बाधा बन रही है। आप कछ सहायता करें। मात इस बात की चिंता न करेगी कि तुम ब्राह्मण हो कि शूद्र हो। कि हिंदू हो कि मुसलमान हो। कि दरिद्र हो कि धनी हो। मौत इस बात की चिंता न करेगी कि तुम कौन हो। मौत के सामने सब बराबर हैं। मौत को ध्यान में रखो तो तुम भल जाओगे कि तुम ब्राह्मण हो| मौत को भूल गये तो ये अकड़े याद रहती हैं। मौत को याद रखो तो तुम भूल जाओगे कि तुम धनी हो कि गरीब हो ही, मौत को भूल गये तो ये अकड़े बनी रहती हैं। किसीके मुंह से न निकला यह मेरे दफन के वक्त कि इन पे खाक न डालो ये हैं नहाए हुए । नहाए हुओं पर भी खाक पड़ जाती है| पड़ती ही है। स्वच्छ से स्वच्छ देह भी कब्र में दबती है, दबती ही है। यह स्वच्छता और ब्राह्मण और श्रेष्ठता और ऐसा और वैसा, यह सब अहंकार के आयोजन हैं। स्वभावत: अगर इनमें तुम बहुत ग्रसित रहे तो संन्यस्त न हो सकोगे। भारत की तुमने एक अनूठी बात देखी? कि संन्यासी को हमने वर्ण-व्यवस्था के बाहर रखा है। संन्यस्त होते से ही कोई व्यक्ति न तो ब्राह्मण रह जाता है न शूद्र, न क्षत्रिय न वैश्य। संन्यास वर्ण -व्यवस्था के बाहर है। चाहे ब्राह्मण संन्यासी हो, चाहे शद्र संन्यासी हो, संन्यासी होते से ही वर्ण के बाहर हो गया, वर्णातीत हो गया। वर्ण का अर्थ होता है, रंग। रंगों में उलझे हो? रूपों में उलझे हो? नाम में उलझे हो? तो तुम संन्यस्त न हो सकोगे। ब्राह्मण तो संन्यस्त नहीं हो सकता। ब्राह्मण छोड़कर कोई संन्यस्त होता और इस अकड़ से मिला क्या है, जो इसको खींचे जा रहे हो? पाया क्या है? ब्राह्मण होने से होगा भी क्या? ब्रह्म होने का मौका चूक रहे ब्राह्मण होने के पीछे उद्दालक ने अपने बेटे श्वेतकेतु को कहा है कि बेटे तू सिर्फ जन्म से ही ब्राह्मण होकर मत रह जाना, क्योंकि हमारे घर में ऐसा कभी नहीं हुआ। 'ऐसा दुर्भाग्य कभी नहीं हुआ। हमारे घर में लोग ब्रह्म को जानकर ब्राह्मण होते रहे। इस परंपरा को खयाल रखना। ब्राह्मण पैदा होकर ही अपने को ब्राह्मण मत मान लेना। यह बड़ा सस्ता ब्राह्मणपन है। इसमें का रखा है! संयोग की बात है। अगर ब्राह्मण के घर में पैदा हुए और उसी वक्त उठाकर रख दिया होता शूद्र के घर में तो तुम समझते
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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