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________________ कभी यह, कभी वह, वह कुछ-न-कुछ लगाए रखती है। तुम इसे खयाल रखना । मैं यह नहीं कह रहा हूं जब बच्चा बीमार हो तो ध्यान मत देना। मैं यह कह रहा इस भांति ध्यान देना कि बच्चे को एक बात साफ हो जाए कि सम्मान स्वास्थ्य का है, बीमारी का नहीं। उसकी तीमारदारी कर लेना, उसकी हिफाजत कर लेना, लेकिन यह भूलकर भी उसके मन में भाव पैदा मत होने देना कि तुम बीमारी को प्रेम देते हो। प्रेम तो बच्चे को तब देना जब वह हंसता हो, मुस्कुराता हो, आनंदित होता हो। तब उसे गले लगाना। और जब बीमार हो, तब दवा देना, भोजन देना, लेकिन ज्यादा उत्सुकता मत लेना। तुम उसके जीवन में स्वास्थ्य, आनंद, खुशी, उत्सव को बढ़ावा देना। तुम पाओगे उसके जीवन में कम से कम बीमारियां होंगी और ज्यादा-से-ज्यादा स्वास्थ्य होगा। तुम अपनी पत्नी को तब प्रेम देना जब वह प्रसन्न है, हंस रही है, आनंदित है, नाच रही है, तब प्रेम देना। जब वह उदास पड़ी है तब दवा दे देना, लेकिन उसमें बहुत उत्सुकता मत लेना। बीमारी में रस लेना ही मत, अन्यथा बीमारी बढ़ती है। बीमारी में रस तोड़ ही देना । और हजारों साल का झेन फकीरों का अनुभव है कि वह पागलों को भी ठीक कर लेते हैं, सिर्फ ध्यान हटाकर। ध्यान नहीं देते। सिर्फ पागल को छोड़ देते हैं उसके भाग्य पर, थोड़ी देर में वह खुद ही समझ जाता है, क्या सार है इस सबमें? अब तुम थोड़ी देर को तुम समझो, यह रॉबर्ट रिप्ले सिर घुटा कर निकला, अगर किसी ने इस पर ध्यान न दिया होता तो दुबारा यह झंझट न करता। इसकी जिंदगी खराब कर दी जिन्होंने ध्यान दिया। जो बाहर निकल आए अपनी दूकान छोड़कर देखने क क्या मामला है, उन्होंने इसकी जिंदगी खराब कर दी। फिर यह जिंदगी भर इसी तरह के काम करता रहा। यही इसकी जिंदगी हो गयी। यह भी कोई काम है! हाथी पर बैठकर निकल गये, यह कोई काम है। आईना बांधकर पूरे मुल्क की पूरी उल्टी यात्रा कर ली यह कोई काम है। यह कोई सृजनात्मकता है। इससे जीवन का कोई अहोभाव हो सकता है। नहीं, आदमी को चुका दिया। जिन्होंने चुकाया उन्हें पता भी नहीं है। तुम जब भी अपने विचारों के प्रति बहुत ध्यान देने लगो तो तुम विचारों को प्राण देते हो, विचारों को बल देते हो। पूरब कहता है, शात, तटस्थ होकर बैठ जाओ, रस ही मत लो, विरस होकर बैठ जाओ, वीतराग होकर बैठ जाओ। कह दो मन को कर तुझे जो करना है, तू अपनी उधेड़बुन कर जैसा तुझे करना है। तुमने देखा कभी घर में बच्चे शात बैठे अपना काम कर रहे हैं, और कोई मेहमान आने को हैं और तुम उनसे कह दो भई, मेहमान आते हैं जरा शांत रहना, फिर वे शात नहीं रहते। मेहमान घर में आएं कि बच्चे बहुत उपद्रव करने लगते हैं। बीच-बीच में आ जाते हैं, अपनी मांग खड़ी करने लगते हैं, कि भूख लगी है मम्मी, कि ऐसा हो रहा है, कि वैसा हो रहा है, कि सिर में दर्द हो रहा है। और तुम चकित होते हो कि ये बच्चे जब मेहमान आते हैं तब क्यों इतना शोरगुल मचाते हैं! बच्चों को एक बात अखरती है कि मेहमानों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है और उन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। तो वे बीच-बीच में आकर ध्यान मांग रहे हैं। वे कहते हैं, ध्यान
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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