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________________ का कहना भी ठीक है कि चंदूलाल को मैं कितने ही जोर से धक्का मारूं, पुराने दोस्त हैं, तुम बीच में बोलनेवाले कौन होते हो? दोस्ती का पता तब चलता है, जब कुछ अशोभन भी चले। दोस्ती कैसी जहां गाली-गलौज न हो। तो हम तो शोभन का अर्थ अशोभन के विपरीत करते हैं। हम कहते हैं, फलां आदमी कितना शोभायुक्त है। लेकिन अष्टावक्र कहते हैं, अगर अशोभन पीछे पड़ा है, दबा है, प्रगट हो सकता है किसी अवसर पर, दबाया गया है, चेष्टा से रोका गया है, तो मिट नहीं गया है, उसकी छाया पड़ती ही रहेगी। यह परम शोभा की दशा नहीं है। परम शोभा की दशा तो वह है, अब याद ही नहीं आता है कि क्या अशोभन है, क्या शोभन है। सहज दशा ही परम शोभा की दशा है। निसर्ग की दशा । स्वस्फूर्त स्वच्छंदता की दशा । इसे खयाल में लेना, सारी दुनिया में भारत को छोड़कर - जीवन की व्यवस्था को द्वंद्व में ही बांटा गया है, स्वर्ग नर्क। भारत एक और नया शब्द रखता है, मोक्ष सुख-दुख, भारत एक तीसरा शब्द लाता है, आनंद। दुर्जन- सज्जन, भारत एक नया शब्द लाता है, जीवनमुक्त | साधु- असाधु, भारत एक नया शब्द लाता है, संत। इनका फर्क समझ लेना। साधु का अर्थ संत नहीं होता। साधु का अर्थ है, जो असाधु के विपरीत। और संत का अर्थ होता है, जहां साधु असाधु दोनों के पार हो गया। स्वर्ग का अर्थ होता है, नर्क के विपरीत, मगर नर्क से बंधा । स्वर्ग से नर्क में गिरने की सुविधा है। गिरेगा ही, कोई भी। इसलिए पुराने शास्त्र भी यही कहते हैं जब स्वर्ग में पुण्य चुक जाता है तो आदमी को गिरना पड़ता है। अप्रतिष्ठा हो जाती है स्वर्ग से । - स्वर्ग और नर्क अलग- अलग नहीं हैं। विपरीत हैं, जुड़े हैं। मोक्ष, वहां से फिर गिरने का कोई उपाय नहीं। वहां से फिर अप्रतिष्ठा नहीं होती। और जहां से अप्रतिष्ठा हो ही न सकती हो, वहीं शोभा है। जहां से अप्रतिष्ठा हो सकती हो, वहां कैसी शोभा ! जहां से गिरना हो सकता हो, वहा पहुंचने का क्या अर्थ! इसलिए सारी दुनिया के धर्म द्वंद्व के पार नहीं गये हैं। ईसाइयत, इस्लाम, यहूदी धर्म स्वर्ग और नर्क की बात करते हैं, लेकिन मोक्ष की कोई धारणा नहीं है। पदार्थ और परमात्मा की बात करते हैं, लेकिन ब्रह्म की कोई धारणा नहीं है। भारत की खोज अनूठी है। जहां-जहां द्वंद्व है, भारत वहां एक तीसरी बात का भी उपयोग करता है। क्योंकि भारत कहता है, द्वंद्व के पार एक तीसरी दशा है। जहां न आदमी सज्जन है, न दुर्जन, वहां संतत्व, वहा जीवनमुक्ति। जहां न बुरा, न भला, वहां जीवनमुक्ति। बुरे और भले तो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जहां पूरा सिक्का ही छोड दिया, वहीं सरलता । 'निष्कपट, सरल और कृतार्थ योगी को कहां स्वच्छंदता है, कहां संकोच है और कहां तत्व का निश्चय है।' क्य स्वाच्छंद्य क्य संकोच: क्य वा तत्वविनिश्चय।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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